बुधवार, 6 जनवरी 2021

BHAGVAD GITA

 तस्य सञ्जनयन्हर्ष कुरुवृद्धः पितामहः। 

सिंहनादं विनधोच्चे:शंखं दध्मौ प्रतापवान।।१२।।

 तस्य:-उसका; सञ्जनयन:-बढ़ाते हुए; हर्षं:-हर्ष; कुरुवृद्ध:-कुरुवंश के वयोवृद्ध;पितामहः-पितामह; सिंह -नादम:-सिंह की सी गर्जना; विनध:-गरज कर; उच्चेः-उच्च स्वर से;शंखं:-शंख; दध्मौ:-बजाया; प्रतापवान:-बलशाली। 

तब कुरुवंश के वयोवृद्ध परम प्रतापी एवं वृद्ध पितामह ने सिंह -गर्जना की सी ध्वनि करने वाले अपने शंख को उच्च स्वर से बजाया,जिससे दुर्योधन को हर्ष हुआ। 

अर्थात:- कुरुवंश के वयोवृद्ध पितामह अपने पौत्र दुर्योधन का मनोभाव जान गये और उसके प्रति अपनी स्वाभाविक दयावश उन्होंने उसे प्रसन्न करने के लिए अत्यंत उच्च स्वर से अपना शंख बजाया,जो उनकी सिंह के समान स्थिति के अनुरूप था। अप्रत्यक्ष रूप में शंख के द्वारा प्रतीकात्मक ढंग से उन्होंने अपने हताश पौत्र दुर्योधन को बता दिया कि उन्हें युद्ध में विजय की आशा नहीं है क्योंकि दूसरे पक्ष में साक्षात भगवान् श्रीकृष्ण हैं। फिर भी युद्ध का मार्गदर्शन करना उनका कर्तब्य था और इस सम्बन्ध में  कसर नहीं रखेंगे। 

क्रमशः !!!!

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