शुक्रवार, 22 जनवरी 2021

BHAGVAD GITA 1:32

 कि नो राज्येन गोविन्द कि भोगैर्जीवितेन वा। 

येषामर्थे काङ्क्षितम नो राज्यम भोगाः सुखानी च।।३२।।

त इमेवस्थिता युद्धे प्राणांस्त्यक्त्वा धनानि च। 

आचार्यः पितरः पुत्रास्तथैव च पितामहाः।।३३।। 

मातुला: श्वसुराः पौत्राः श्यालाः सम्बन्धिनस्तथा।

एतान्न हन्तुमिच्छामि घ्रतोपि मधुसूदन।। ३४।।  

अपि त्रैलोक्यराज्यस्य हेतोः किं नु महीकृते। 

निहत्य धार्तराष्ट्रान्नः का प्रीतिः स्यात्तजनार्दनः।।३५।।

किम: -क्या लाभ;  न:-हमको; राज्येन: -राज्य से; गोविन्द: -हे कृष्ण; किम: -क्या; भोगै: -भोग से; जीवितेन:- जीवित रहने से; वा :-अथवा; येषां :- जिनके; अर्थे :- लिए; काङ्क्षितम:-इच्छित है; नः -हमारे द्वारा; राज्यम:-राज्य; भोगाः :-भौतिक भोग; सुखानी -समस्त सुख; 
च :-भी; ते :-वे ;  इमे :-ये; अवस्थिता: -स्थित; युद्धे :-युद्ध भूमि में; प्राणान:-जीवन को ; त्यक्त्वा:-त्याग कर; धनानि:-धन को; च:-भी; आचार्याः- गुरुजन; पितरः पितृगण; पुत्राः :-पुत्रगण ; तथा :-और; एव:-निश्चय ही; च:- भी; पितामहाः -पितामह; मातुलाः -मामा लोग; 
श्वसुराः-श्वसुर; पौत्राः-पौत्र; श्यालाः-साले; संबन्धिनः- सम्बन्धी; तथा एतान :-ये सब; न:-कभी नहीं; हन्तुम :-मारना; इच्छामि:-चाहता हूँ;  घृत:मारे जाने पर; अपि:-भी; मधुसूदन:-हे मधु असुर के मारने वाले कृष्ण;अपि:-तो भी; त्रैलोक्य :-तीनों लोकों के;राज्यस्य:- राज्य के; हेतोः- विनिमय में; किम नु:-क्या कहा जाय; महीकृते:-पृथ्वी केलिए;निहत्य:-मारकर; धार्तराष्ट्रान :-धृतरास्ट्र के पुत्रों को; नः-हमारी; का :-क्या; प्रीति:-प्रसन्नता; स्यात :-होगी; जनार्दन :-हे जीवों के पालक। 

हे गोविन्द ! हमें राज्य,सुख अथवा इस जीवन से क्या लाभ ! क्योंकि  जिन सारे लोगों के लिए हम उन्हें चाहते हैं वे ही इस युद्ध भूमि में खड़े हैं।  

हे मधुसूदन !जब गुरुजन,पितृगण,पुत्रगण,पितामह,मामा,ससुर,पौत्रगण,साले तथा अन्य सारे सम्बन्धी अपना -अपना धन एवं प्राण देने के लिए तत्पर हैं और मेरे सक्षम खड़े हैं तो फिर मैं इन सबको क्यों मारना चाहूंगा,भले ही वे मुझे क्यों न मार डालें ? हे जीवों के पालक ! मैं इन सबों से लड़ने को तैयार नहीं, भले ही बदले में मुझे तीनों लोक क्यों न मिलते हों,इस पृथ्वी की तो बात छोड़ दें। भला ध्रतराष्ट्र के पुत्रों को मारकर हमें कौन सी प्रसन्नता मिलेगी ?

अर्थात :-

अर्जुन ने भगवान् कृष्ण को गोविन्द कह कर सम्बोधित किया क्योंकि वे गौओं तथा इन्द्रयों के समस्त प्रसन्नता के विषय हैं। इस विशिष्ट शब्द का प्रयोग करके अर्जुन संकेत करता है कि कृष्ण यह समझें कि अर्जुन की इन्द्रयाँ कैसे तृप्त होंगी। किन्तु गोविन्द हमारी इन्द्रयों को तुष्ट करने के लिए नहीं हैं। हाँ यदि हम गोविन्द की इन्द्रयों को तुष्ट करने का प्रयास करते हैं तो हमारी इन्द्रियां स्वतः तुष्ट होती हैं। भौतिक दृष्टि से प्रत्येक व्यक्ति अपनी इन्द्रयों को तुष्ट करना चाहता है और चाहता है की ईश्वर उसके आज्ञापालक की तरह काम करे। किन्तु ईश्वर उनकी तृप्ति वहीँ तक करते हैं जितने के वे पात्र होते हैं -उस हद तक नहीं जितना वे कहते हैं। किन्तु जब कोई इसके विपरीत मार्ग ग्रहण करता है अर्थात जब वह अपनी इन्द्रियों की तृप्ति की चिंता न करके गोविन्द की इद्रियों की तुष्टि करने का प्रयास करता है तो गोविन्द की कृपा से जीव की सारी  इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं। यहाँ पर जाती तथा कुटुम्बियों के प्रति अर्जुन का प्रगाढ़ स्नेह आंशिक रूप से इन सबके प्रति उसकी स्वाभाविक करुणा के कारण हैं। अतः वह युद्ध करने के लिए तैयार नहीं है। 

हर व्यक्ति अपने बैभव का प्रदर्शन अपने मित्रों तथा परिजनों के समक्ष करना चाहता है,किन्तु अर्जुन को भय है कि उसके सारे मित्र तथा परिजन युद्धभूमि में मारे जायेंगे  और वह विजय के पश्चात उनके साथ अपने बैभव का उपयोग नहीं कर सकेगा। भौतिक जीवन का यह सामान्य लेखा जोखा है। किन्तु  आध्यात्मिक जीवन इससे सर्वदा भिन्न होता है। चूंकि भक्त भगवान् की इच्छाओं की पूर्ति करना चाहता है अतः भगवद इच्छा होने पर वह भगवान् की सेवा के लिए ऐश्वर्य स्वीकार कर सकता है, किन्तु यदि भगवद इच्छा न हो तो वह एक पैसा भी ग्रहण नहीं कर सकता अर्जुन अपने सम्बन्धियों को मारना नहीं चाह रहा था और यदि उनको  मारने की  आवश्यकता हो तो अर्जुन की इच्छा थी की कृष्ण स्वयं उनका वध करे। इस समय उसे यह पता नहीं है की कृष्ण उन सबों को युद्धभूमि में आने से पूर्व ही मार चुके हैं और उसे निमित मात्र बनना है। इसका विवरण अगले अध्यायों में होगा। .भगवान् का असली भक्त होने के कारण अर्जुन अपने अत्याचारी बंधु-बांधवों से प्रतिशोध नहीं लेना चाहते, किन्तु भगवान् दुष्टों द्वारा भक्त के उत्पीड़न को सहन नहीं कर पाते। भगवान् किसी व्यक्ति को अपनी इच्छा से क्षमा कर सकते हैं, किन्तु यदि कोई उनके भक्तों को हानि पहुंचाता है तो वे उसे क्षमा नहीं कर सकते। इसलिए भगवान् इन दुराचारियों को वध करने के लिए उद्धत थे यद्धपि अर्जुन उन्हें क्षमा करना चाहता था। 

क्रमशः !!!!     🙏🙏🙏                                                       

  

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