BHAGVAd GITA
योत्स्यमानानवेक्षेहं य एतेत्र समागताः।
धार्तराष्ट्रस्य दुर्बुद्धेर्युद्धे प्रियचिकीर्षवः।।२३।।
योत्स्यमानान -युद्ध करने वालों को; अवेक्षे - देखूं; अहम् - मैं; ये -जो; एते -वे;अत्र -यहाँ,समागताः- एकत्र; धार्तराष्टस्य -धृतराष्ट्र के पुत्र की;दुर्बुद्धे-दुर्बुद्धि; युद्धे:-युद्ध में, प्रिय-मंगल, भला; चिकीर्षवः -चाहने वाले।
मुझे उन लोगों को देखने दीजिये,जो यहाँ पर धृतराष्ट्र के दुर्बुद्धि पुत्र (दुर्योधन) को प्रसन्न करने की इच्छा से लड़ने के लिए आये हुए हैं।
अर्थात :-यह सर्वविदित था कि दुर्योधन अपने पिता धृतराष्ट्र की सांठ गाँठ से पापपूर्ण योजनाए बनाकर पांडवों के राज्य को हड़पना चाहता था। अतः जिन समस्त लोगों ने दुर्योधन का पक्ष ग्रहण किया था वे उसी के सामानधर्मा रहे होंगें। अर्जुन युद्ध प्रारम्भ होने के पूर्व यह तो जान लेना चाहता था कि कौन -कौन से लोग आये हुए हैं। किन्तु उन के समक्ष समझौता का प्रस्ताव रखने की उसकी कोई योजना नहीं थी। यह भी तथ्य था कि वह उनकी शक्ति का, जिसका उसे सामना करना था,अनुमान लगाने की दृष्टि से उन्हें देखना चाह रहा था,यद्द्पि उसे अपनी विजय का विश्वास था क्योंकि कृष्ण उसकी बगल में विराजमान थे।
क्रमशः-!!!!!
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