सोमवार, 18 जनवरी 2021

BHAGVAD GITA

 तान्समीक्ष्य स कौन्तेय: सर्वान्बन्धूनवस्थितान। 

कृपया परयाविष्टो विषीदन्निदमब्रवीत।।२७।।

तान :-उन सब को; समीक्ष्य :-देखकर; सः -वह; कौन्तेय -कुन्तीपुत्र; सर्वान:-सभी प्रकार के;बंधून:-सम्बन्धियों को; अवस्थितान -स्थित;  कृपया - दयावश; परया-अत्यधिक; अविष्ट: -अभिभूत; विषीदन -शोक करता हुआ; इदम-इस प्रकार; अब्रवीत- बोला। 

 जब कुन्तीपुत्र अर्जुन ने मित्रों तथा सम्बन्धियों की इन बिभिन्न श्रेणियों को देखा तो वह करुणा से अभिभूत हो गया और इस प्रकार बोला। 

अर्जुन उवाच 

दृष्टेमम स्वजनं कृष्ण युयुत्सुं समुपस्थितम। 

सीदन्ति मम गात्राणि मुखं च परिश्रुस्यति।। २८।। 

अर्जुन उवाच -अर्जुन ने कहा; दृष्टा:-देखकर; इमम -इन सारे; स्वजनम-सम्बन्धियों को; कृष्ण -हे कृष्ण; युयुत्सुम -युद्ध की इच्छा रखने वाले; समुपस्थितम -उपस्थित; सीदन्ति -काँप रहे हैं; मम -मेरे; गात्राणि -शरीर के अंग; मुखम - मुहं; च - भी; परिशयुष्यति- सूख रहा है। 

अर्जुन ने कहा -हे कृष्ण ! इस प्रकार युद्ध की इच्छा रखने वाले अपने मित्रों तथा सम्बन्धियों को अपने समक्ष उपस्थित देखकर मेरे शरीर के अंग काँप रहे हैं और मेरा मुहं सूखा जा रहा है। 

अर्थात :-यथार्थ भक्ति से युक्त मनुष्य में सारे सद्गुण रहते हैं.जो सत्पुरषों या देवताओं में पाए जाते हैं, जबकि अभक्त अपनी शिक्षा तथा संस्कृति के द्वारा भौतिक योग्यताओं में चाहे कितना ही उन्नत क्यों न हो इन ईश्वरीय गुणों से विहीन होता है। अतः स्वजनों, मित्रों तथा सम्बन्धियों को युद्धभूमि में देखते ही अर्जुन उन सबों के लिए करुणा से अभिभूत हो गया ,जिन्होंने परस्पर युद्ध करने का निस्चय किया था। जहाँ तक उसके अपने सैनिकों का सम्बन्ध था, वह उनके प्रति प्रारम्भ से ही दयालु था, किन्तु बिपक्षी दल के सैनिकों की आसन्न मृत्यु को देखकर वह उन पर भी दया का अनुभव कर रहा था। और जब वह इस प्रकार सोच रहा था तो उसके अंगों में कम्पन होने लगा और मुहं सूख गया। 

उन सबको युद्धभिमुख देखकर उसे आष्चर्य भी हुआ। प्रायः सारा कुटुम्ब, अर्जुन के सगे सम्बन्धी उससे युद्ध करने आये थे। यद्द्पि इसका उल्लेख नहीं है, किन्तु तो भी सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि न केवल उसके अंग काँप रहे थे और मुहं सूख रहा था अपितु वह दयावश रुदन भी कर रहा था अर्जुन में ऐसे लक्षण किसी दुर्बलता के कारण नहीं अपितु ह्रदय की कोमलता के कारण थे, जो भगवान् के शुद्ध भक्त का लक्षण है। अतः कहा गया है। 

यस्यास्ति भक्तिर्भगवत्तिञ्चिना                                                     

सर्वगुणैस्तत्र  समासते सुराः। 

                      हरावभक्तस्य कुतो महद्गुणा 

मनोरथेनासती धावतो बहिः।। 

जो भगवान् के प्रति अविचल भक्ति रखता है उसमे देवताओं के सद्गुण पाए जाते हैं। किन्तु जो भगवद्भक्त नहीं हैं उसके पास भौतिक योग्यताएं ही रहती हैं जिनका कोई मूल्य नहीं होता है। इसका कारण यह है कि वह मानसिक धरातल पर मँडराता रहता है और ज्वलन्त माया के द्वारा अवश्य ही आकृष्ट होता है (भागवत ५.१८.१२.)

क्रमशः !!!!

  

                           

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