BHAGVAD GITA - 1.30
न च शक्रोम्यवस्थातुं भ्र्मतीव च में मनः।
निमित्तानि च पश्यामि विपरीतानि केशवः।। ३०।।
न -नहीं; च -भी; शक्रोमि -समर्थ हूँ; अवस्थातुम -खड़े होने में; भ्र्मति -भूलता हुआ; इव -सदृश्य; च -तथा; में -मेरा; मनः-मन; निमित्तानि -कारण; च -भी; पश्यामि -देखता हूँ; विपरीतानि-बिल्कुल उल्टा; केशव -केशी असुर को मारने वाले कृष्ण।
मैं यहाँ अब और अधिक खड़ा रहने में असमर्थ हूँ। मैं अपने को भूल रहा हूँ और मेरा सिर चकरा रहा है। हे कृष्ण ! मुझे तो केवल अमंगल के कारण दिख रहे हैं।
अर्थात :- अपने अधैर्य के कारण अर्जुन युद्ध भूमि में खड़ा रहने में असमर्थ था और अपने मन की दुर्बलता के कारण उसे आत्मविस्मृति हो रही थी। भौतिक वस्तुओं के प्रति अत्यधिक आसक्ति के कारण मनुष्य ऐसी मोहमयी स्थिति में पड़ जाता है। भयं द्वितीयाभिनिवेशतः स्यात -ऐसा भय तथा मानसिक अंसतुलन उन व्यक्तियों में उत्पन्न होता है,जो भौतिक परिस्थितियों से ग्रस्त होते हैं। अर्जुन को युद्ध भूमि में केवल दुखदायी पराजय प्रतीत हो रही थी -वह शत्रु पर विजय पाकर भी सुखी नहीं होगा। निमित्तानि विपरीतानि शब्द महत्वपूर्ण हैं। जब मनुष्य को अपनी आशाओं में केवल निराशा दिखती है सोचता है "मैं यहाँ क्यों हूँ ?"प्रत्येक प्राणी अपने में तथा अपने स्वार्थ में रुचि रखता है। किसी को भी परमात्मा में रूचि नहीं होती। कृष्ण की इच्छा से अर्जुन अपने स्वार्थ के प्रति अज्ञान दिखा रहा है। मनुष्य का वास्तविक स्वार्थ तो विष्णु या कृष्ण में निहित है। बद्धजीव भूल जाता है इसलिए उसे भौतिक कष्ट उठाने पड़ते हैं अर्जुन ने सोचा कि उसकी विजय केवल उसके शोक का कारण बन सकती है।
क्रमशः !!!
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