मंगलवार, 19 जनवरी 2021

BHAGVAD GITA

 वेपथुरश्च शरीरे में रोमहर्षश्च जायते। 

गाण्डीवं स्रंसते हस्तात्त्वक्चैव परिदह्यते।।२९।।

वेपथुः-शरीर का कम्पन; च-भी; शरीरे-शरीर में; में -मेरे; रोम -हर्ष:-रोमांच; च -भी; जायते- उत्पन्न हो रहा है; गाण्डीवं -अर्जुन का धनुष,गांडीव; संस्रते- छूट या सरक रहा है; हस्तात -हाथ से; त्वक -त्वचा; च -भी; एव-निश्चय ही; परिदह्यते-जल रही है। 

मेरा सारा शरीर काँप रहा है,मेरे रोंगटे खड़े हो रहे हैं,मेरा गांडीव धनुष मेरे हाथ से सरक रहा है और मेरी त्वचा जल रही है। 

अर्थात :-शरीर में दो प्रकार का कम्पन होता है और रोंगटे भी दो प्रकार से खड़े होते हैं। ऐसा या तो आध्यात्मिक परमानन्द के समय या भौतिक परिस्थितियों में अत्यधिक भय उत्पन्न होने पर होता है। दिव्य साक्षात्कार में कोई भय नहीं होता। इस अवस्था में अर्जुन के जो लक्षण हैं वे भौतिक भय अर्थात जीवन की हानि के कारण हैं। अन्य लक्षणों से भी यह स्पष्ट है,वह इतना अधीर हो गया कि उसका विख्यात धनुष गांडीव उसके हाथों से सरक रहा था और उसकी त्वचा में जलन हो रही थी। ये सब लक्षण देहात्मबुद्धि से जन्य हैं। 

क्रमशः !!!

  

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