रविवार, 17 जनवरी 2021

BHAGVAD GITA

 तत्रापश्यत्स्थितानपार्थ: पितृनथ पितामहान। 

आचार्यान्मातुलानभृतृन्पुत्रान्पौत्रान्सखींस्तथा। 

श्र्वश्रुरान्सुहृदयेचैव सेनयोरुभयोरपि।।२६।।   

     तत्र- वहां अपश्यत -देखा;स्थितान -खड़े;पार्थ -पार्थ ने; पितृन -पितरों (चाचा ताऊ )को ; अथ-भी;पितमहान -पितामहों को; आचार्यान -शिक्षकों को; मातुलान -मामाओं को;भ्रातृन-भाइयों को; पुत्रान -पुत्रों को;सखीन -मित्रों को; तथा-और; श्र्वश्रुरान-श्र्वसुरों को;सुह्रद: -शुभचिंतकों को; च-भी; एव निश्चय ही; सनयोः -सेनाओं के; उभयोः -दोनों पक्षों की; अपि-सहित। 

  अर्जुन ने वहां पर दोनों पक्षों की सेनाओं के मध्य में अपने चाचा-ताऊओं,पितामहों, गुरुओं, मामाओं, भाइयों, पुत्रों, पौत्रों,मित्रों, ससुरों,और शुभचिंतकों को भी देखा। 

अर्थात :-अर्जुन युद्ध भूमि में अपने सभी सम्बन्धियों को देख सका। वह अपने पिता के समकालीन भूरिश्रवा जैसे व्यक्तियों को, भीष्म तथा सोमदत्त जैसे पितामहों, द्रोणाचार्य तथा कृपाचार्य जैसे गुरुओं, शल्य तथा शकुनि जैसे मामाओं,दुर्योधन जैसे भाइयों ,लक्ष्मण जैसे पुत्रों,अश्वथामा जैसे मित्रों एवं कृतवर्मा जैसे शुभचिंतकों को देख सका। वह उन सेनाओं को भी देख सका,जिनमें उसके अनेक मित्र थे। 

क्रमशः !!!

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