सोमवार, 11 जनवरी 2021

BHAGVAD GITA

 सः घोषो धार्तराष्ट्राणां हृदयानि व्यदारयत। 

नभश्च पृथिवीं चैव तुमुलोभ्यनुनादायन।। १९।। 

सः -उस; घोष -शब्द ने; धार्तराष्ट्राणां:-ध्रतराष्ट्र के पुत्रों के; हृदयानि :-ह्रदय को  व्यदारयत:-विदीर्ण कर दिया; नभः -आकाश; च-भी; पृथ्वीम- पृथ्वी तल को; च -भी; एव -निश्चय ही; तुमुल -कोलाहलपूर्ण; अभ्यनु-नादायन :-प्रतिध्वनित करता। 

इन विभिन्न शंखों की ध्वनि कोलाहलपूर्ण बन गई जो आकाश तथा पृथ्वी को शब्दायमान करती हुई धृतराष्ट्र के पुत्रों के ह्रदयों को विदीर्ण करने लगी। 

अर्थात :-जब भीष्म तथा दुर्योधन के पक्ष के अन्य वीरों ने अपने -अपने शंख बजाये तो पांडवों के ह्रदय विदीर्ण नहीं हुए। ऐसी घटनाओं का वर्णननहीं मिलता, किन्तु इस विशिस्ट श्लोक में कहा कि पांडव पक्ष के शंखनाद से धृतराष्ट्र के पुत्रों के ह्रदय विदीर्ण हो गये। इसका कारण स्वयं पांडव और भगवान् कृष्ण में उनका विश्वास है। परमेस्वर की शरण ग्रहण करने वाले को किसी प्रकार का भय नहीं रह जाता,चाहे वह कितनी ही बिपत्ति में क्यों न हो। 

क्रमशः !!!!

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