BHAGVAD GITA
भीष्मद्रोणप्रमुखतः सर्वेषां च महीक्षिताम ।
उवाच पार्थ पश्यैतान्समवेतांकुरुनीति।।२५।।
भीष्म -भीष्म पितामह ; द्रोण -गुरु द्रोण; प्रमुखतः-के समक्ष; सर्वेषाम -सबों के; च -भी; महीक्षिताम -संसार भर के राजा; उवाच -कहा; पार्थ। हे पृथा के पुत्र; पश्य -देखो; एतान -इन सबों को; समवेतान-एकत्रित; कुरुन -कुरुवंश के सदस्यों को; इति -इस प्रकार।
भीष्म,द्रोण तथा विश्व भर के अन्य समस्त राजाओं के सामने भगवान् ने कहा कि हे पार्थ !यहाँ पर एकत्र सारे कुरुओं को देखो।
अर्थात-समस्त जीवों के प्र्मात्मास्वरूप भगवान् कृष्ण यह जानते थे कि अर्जुन के मन में क्या बीत रहा है। इस प्रसंग में हृषिकेश शब्द का प्रयोग सूचित करता है कि वे सब कुछ जानते थे। इसी प्रकार पार्थ शब्द अर्थात प्रथा कुन्तीपुत्र भी अर्जुन के लिए प्रयुक्त होने के कारण महत्वपूर्ण है। मित्र के रूप में वे अर्जुन को बता देना चाहते थे कि चूँकि अर्जुन उनके पिता वसुदेव की बहन पृथा का पुत्र था इसलिए उन्होंने अर्जुन का सारथी बनना स्वीकार किया था। किन्तु जब उन्होंने अर्जुन से "कुरुओं को देखो" कहा तो इससे उनका क्या अभिप्राय था? क्या अर्जुन वहीँ पर रूक कर युद्ध करना नहीं चाहता था ? कृष्ण को अपनी बुआ पृथा के पुत्र से कभी भी ऐसी आशा नहीं थी। इस प्रकार से कृष्ण ने अपने मित्र की मनःस्थिति की पूर्वसूचना परिहासवश दी है।
क्रमशः !!!
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