मंगलवार, 5 जनवरी 2021

BHAGVAD GITA

अध्याय १ श्लोक ११  

अयनेषु च सर्वेषु यथाभागमवस्थिताः। 

भीष्ममेवाभिरक्षन्तु भवन्तः सर्व एव हि।।११।।

अयनेषु:-मोर्चों में; च:-भी; सर्वेषु:-सर्वत्र; यथा -भागम:-अपने-अपने स्थानों पर; अवस्थिताः-स्थित; भीष्मम:-भीष्मपितामह की; एव:-निश्चय ही। 

अतएव  सैन्यव्यूह  में अपने-अपने मोर्चों पर खड़े रहकर आप सभी भीष्मपितामह को पूरी-पूरी सहायता दें। 

अर्थात:- भीष्मपितामह के शौर्य की प्रशंसा करने के बाद दुर्योधन ने सोचा कि कहीं अन्य योद्धा यह न समझ लें कि उन्हें कम महत्त्व दिया जा रहा है

अतः दुर्योधन ने अपने सहज कूटनीतिक ढंग से स्थिति सँभालने के उद्देश्य से उपर्युक्त शब्द कहे। 

उसने बलपूर्बक कहा कि भीष्मदेव निस्सन्देह महानतम योद्धा हैं, किन्तु अब वे वृद्ध हो चुके हैं,अतः प्रत्येक सैनिक को चाहिए कि चारों ओर से उनकी सुरक्षा का विशेष ध्यान रखें। हो सकता है कि वे किसी एक दिशा में युद्ध करने में लग जायँ और शत्रु इस व्यस्तता का लाभ उठा ले। अतः यह आवश्यक है कि अन्य योद्धा मोर्चों पर अपनी -अपनी स्थिति पर अडिग रहें और शत्रु को व्यूह न तोड़ने दें। 

दुर्योधन को पूर्ण विश्वास था कि कुरुओं की विजय भीष्मदेव की उपस्थिति पर निर्भर है। उसे युद्ध में भीष्मदेव तथा द्रोणाचर्य के पूर्ण सहयोग की आशा थी क्योंकि वह अच्छी तरह जानता था कि इन दोनों ने उस समय एक शब्द भी नहीं कहा था,जब द्रौपदी को असहाय अवस्था में भरी सभा में नग्न किया जा रहा था और जब उसने उनसे न्याय की भीख मांगी थी। यह जानते हुए भी कि इन दोनों सेनापतियों के मन में पांडवों के लिए स्नेह था ,दुर्योधन को आशा थी कि वे इस स्नेह को उसी तरह त्याग देंगें, जिस तरह उन्होंने धूत-क्रीड़ा के अवसर पर किया था। 

क्रमशः !!!! 


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