सोमवार, 1 फ़रवरी 2021

BHAGAVAD GITA 1:46

 सञ्जय उवाच 

एवमुक्त्वार्जुनः संख्ये रथोपस्थ उपविशत। 

विसृज्य सशरं चापं शोकसंविग्नमानसः।।४६।। 

सञ्जय उवाच :-संजय ने कहा; एवं इस प्रकार उक्त्वा :-कहकर;अर्जुनः-अर्जुन; संख्ये :-युद्धभूमि में;रथ:-रथ के; उपस्थे :-आसन पर उपविशत :-पुनःबैठ गया; विसृज्य :-एक और रखकर; स -शरम :-बाणो सहित; चापम:-धनुष को; शोक:-शोक से; संविग्न :-संतप्त,उद्विग्न; मानसः -मन  भीतर। 

संजय ने कहा -युद्धभूमि में इस प्रकार कह कर अर्जुन ने अपने धनुष तथा बाण एक ओर रख दिया है और शोक संतप्त चित्त से रथ के आसन पर बैठ गया। 

अर्थात :-अपने शत्रु की स्थिति का अवलोकन करते समय अर्जुन रथ पर खड़ा हो गया था,किन्तु वह शोक से इतना संतप्त हो उठा कि अपना धनुष -बाण एक ओर रख कर रथ के आसन पर पुनः बैठ गया। ऐसा दयालु तथा कोमलहृदय व्यक्ति,जो भगवान् की सेवा में रत हो,आत्मज्ञान प्राप्त करने योग्य है। 

इस प्रकार भगवद्गीता के प्रथम अध्याय  "कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्यनिरीक्षण" का भक्तिवेदांत तात्पर्य पूर्ण हुआ। 

क्रमशः !!!

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