शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2021

BHAGAVAD GITA 2:4

 अर्जुन उवाच 

कथं भीष्ममहं संख्ये द्रोण च मधुसूदन। 

इषुभिः प्रतियोत्स्यामि पूजार्हावरिसूदन।।४।।

अर्जुनः उवाच :-अर्जुन ने कहा; कथम:- किस प्रकार; भीष्मम :-भीष्म को; अहम :-मैं; संख्ये :-युद्ध में; द्रोणम:- द्रोण को; च :-भी; मधु-सूदन:-हे मधु के संहारकर्ता; इषुभिः -तीरों से; प्रतियोत्स्यामि:-उलट कर प्रहार करूंगा;  पूजा-अर्हा :-पूजनीय; अरि -सूदन:-हे शत्रुओं के संहारक। 

अर्जुन ने कहा -हे शत्रुहंता ! हे मधुसूदन ! मैं युद्धभूमि में किस तरह भीष्म तथा द्रोण जैसे पूजनीय व्यक्तियों पर उलट कर बाण चलाऊंगा ?

तात्पर्य :- भीष्म पितामह तथा द्रोणाचार्य जैसे सम्माननीय व्यक्ति सदैव पूजनीय हैं। यदि वे आक्रमण भी करें तो उन पर उलट कर आक्रमण नहीं करना चाहिए। यह सामान्य शिष्टाचार है कि गुरुजनों से वाग्युद्ध भी न किया जाय। यहाँ तक कि यदि कभी वे रुक्ष व्यवहार करें तो भी उनके साथ रुक्ष व्यवहार न किया जाय। तो फिर भला अर्जुन उन पर बाण कैसे छोड़ सकता था ? क्या कृष्ण कभी अपने पितामह,नाना उग्रसेन या अपने आचार्य सान्दीपनि मुनि पर हाथ चला सकते थे ? अर्जुन ने  कृष्ण के समक्ष ये ही कुछ तर्क प्रस्तुत किये। 

क्रमशः ... 

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