बुधवार, 10 फ़रवरी 2021

BHAGAVAD GITA 2:9

🙏🙏 सञ्जय: उवाच 🙏🙏

एवमुक्ता हृषीकेशं गुडाकेशः परन्तपः।  

न योत्स्य इति गोविन्दमुक्त्वा तूष्णीं बभूव ह।।९।।  

सञ्जयः उवाच-संजय ने कहा; एवम-इस प्रकार; उक्त्वा-कहकर; हृषीकेशं-कृष्ण से,जो इन्द्रयों के स्वामी हैं; गुडाकेशः -अर्जुन,जो अज्ञान मिटने वाला है; परन्तपः-अर्जुन,शत्रुओं का दमन  करने वाला;  योत्स्ये -नहीं लडूंगा; इति-इस प्रकार; गोविन्दम इन्द्रयों के आनन्ददायक कृष्ण से; उक्त्वा-कहकर; तूष्णीम-चुप; बभूव -हो गया; ह-निश्चय ही। 

संजय ने कहा -इस प्रकार कहने के बाद शत्रुओं का दमन करने वाला अर्जुन कृष्ण से बोला, "हे गोविन्द ! मैं युद्ध नहीं करूँगा,"और चुप हो गया। 

तात्पर्य :- धृतराष्ट्र को यह जानकर परम प्रसन्नता हुई होगी कि अर्जुन युद्ध न करके युद्ध भूमि छोड़कर भिक्षाटन करने जा रहा है। किन्तु संजय ने उसे पुनः यह कहकर निराश कर दिया कि अर्जुन अपने  शत्रुओं को मारने में सक्षम हैं (परन्तपः)।   यद्दपि कुछ समय के लिए अर्जुन अपने पारिवारिक स्नेह के प्रति मिथ्या शोक से अभिभूत था,किन्तु उसने शिष्य रूप में अपने गुरु श्री कृष्ण की शरण ग्रहण कर ली। इससे सूचित होता है कि शीघ्र ही  वह  शोक से निवृत  हो जायेगा और आत्म-साक्षात्कार या कृष्ण भावनामृत के पूर्ण ज्ञान प्रकाशित होकर पुनः युद्ध करेगा। इस तरह धृतराष्ट्र का हर्ष भंग हो जायेगा। 

क्रमशः 

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