BHAGAVAD GITA 2:23
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो शोषयति मारुतः।।
न -कभी नहीं; एनम -इस आत्मा को; छिन्दन्ति -खंड -खंड कर सकते हैं; शस्त्राणि -हथियार; न-कभी नहीं;एनम -इस आत्मा को; दहति-जला सकता है; पावकः -अग्नि; न -कभी नहीं; च-भी; एनम -इस आत्मा को; क्लेदयन्ती -भिगो सकता है; आप:-जल; न -कभी नहीं; शोषयति -सूखा सकता है;मारुतः -वायु।
यह आत्मा न तो कभी किसी शस्त्र द्वारा खण्ड-खण्ड किया जा सकता है,न अग्नि द्वारा जलाया जा सकता है,न जल द्वारा भिगोया या वायु द्वारा सुखाया जा सकता है।
तात्पर्य :- सारे हथियार -तलवार,आग्नेयास्त्र,वर्षा के अस्त्र,चक्रवात आदि आत्मा को मारने में असमर्थ हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि आधुनिक आग्नेयास्त्रों के अतिरिक्त मिट्टी,जल,वायु,आकाश आदि के भी अनेक प्रकार के हथियार होते थे। यहाँ कि आधुनिक युग के नाभिकीय हथियारों की गणना भी आग्नेयास्त्रों में की जाती है,किन्तु पूर्वकाल में विभिन्न पार्थिव तत्वों से बने हुए हथियार होते थे। आग्नेयास्त्रों का सामना जल के (वरुण) हथियारों से किया जाता था,जो आधुनिक विज्ञान के लिए अज्ञात है। आधुनिक विज्ञान को चक्रवात हथियारों का भी पता नहीं है। जो भी हो,आत्मा न तो कभी खण्ड -खण्ड किया सकता है ,न किन्ही वैज्ञानिक हथियारों से उसका संहार किया सकता है, चाहे उनकी संख्या कितनी ही क्यों न हो।
मायावादी इसकी व्याख्या नहीं कर सकते कि जीव किस प्रकार अपने अज्ञान के कारण उत्पन्न हुआ है और तत्पश्चात माया की शक्ति से आवृत हो गया। न ही आदि परमात्मा से जीवों को विलग कर पाना सम्भव था,प्रत्युत सारे जीव परमात्मा से विलग हुए अंश हैं। चूँकि सनातन अणु -आत्मा हैं,अतः माया द्वारा आवृत होने की उनकी प्रवृति स्वाभाविक है और तरह वे भगवान् की संगति से पृथक हो जाते हैं, जिस प्रकार अग्नि के स्फुलिंग अग्नि से विलग होते ही बुझ जाते हैं,यद्दपि इन दोनों गुण समान होते हैं। वाराह पुराण में जीवों को परमात्मा का भिन्न अंश कहा गया है। भगदगीता के अनुसार भी वे शाश्वत रूप से ऐसे ही हैं। अतः मोह से मुक्त होकर भी जीव पृथक अस्तित्व रखता है, जैसा कि कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिये गये उपदेशों से स्पष्ट है अर्जुन कृष्ण के उपदेश के कारण मुक्त तो हो गया,किन्तु कभी भी कृष्ण से एकाकार नहीं हुआ।
क्रमशः 🙏🙏
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