BHAGAVAD GITA 2:21
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वेदाविनाशिनं नित्यं य एनमजमव्ययम।
कथं स पुरुषः पार्थ कं घातयति हन्ति कम।।२१।।
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वेद -जानता है;अविनाशिनं -अविनाशी को;नित्यं -शाश्वत; यः -जो; एनम -इस (आत्मा );अजम -अजन्मा; अव्ययं -निर्विकार; कथम -कैसे; सः -वह; पुरुषः -पुरुष; पार्थ -हे पार्थ(अर्जुन ); कम -किसको; घातयति -मरवाता है; हन्ति -मारता है; कम -किसको।
हे पार्थ ! जो व्यक्ति यह जानता है की आत्मा अविनाशी,अजन्मा,शाश्वत तथा अव्यय है ,वह भला किसी को कैसे मार सकता है या मरवा सकता है ?
तात्पर्य :- प्रत्येक वस्तु की समुचित उपयोगिता होती है और जो ज्ञानी होता है वह जानता है कि किसी वस्तु का कहाँ और कैसे प्रयोग किया जाय। इसी प्रकार हिंसा की भी अपनी उपयोगिता है और इसका उपयोग इसे जानने वाले पर निर्भर करता है। यद्दपि हत्या करने वाले व्यक्ति को न्यायसंहिता के अनुसार प्राणदण्ड दिया जाता है,किन्तु न्यायाधीश को दोषी नहीं ठहराया जा सकता,क्योंकि वह न्यायसंहिता के अनुसार ही दूसरे व्यक्ति पर हिंसा किये जाने का आदेश देता है। मनुष्यों के विधि-ग्रन्थ मनुसंहिता में इसका समर्थन किया गया है कि हत्यारे को प्राणदंड देना चाहिए जिससे उसे अगले जीवन में अपना पापकर्म भोगना न पड़े। अतः राजा द्वारा हत्यारे को फाँसी का दंड एक प्रकार से लाभप्रद है।
इसी प्रकार जब कृष्ण युद्ध करने का आदेश देते हैं तो यह समझना चाहिए कि यह हिंसा परम न्याय के लिए है और इस तरह अर्जुन को इस आदेश का पालन यह समझ कर करना चाहिए कि कृष्ण के लिए किया गया युद्ध हिंसा नहीं है क्योंकि मनुष्य या दूसरे शब्दों में आत्मा को मारा नहीं जा सकता। अतः न्याय के हेतु तथाकथित हिंसा की अनुमति है। शल्यक्रिया का प्रयोजन रोगी को मारना नहीं अपतु उसको स्वस्थ बनाना है। अतः कृष्ण आदेश पर अर्जुन द्वारा किये जाने वाला युद्ध पुरे ज्ञान के साथ हो रहा है,उससे पापफल की संभावना नहीं है। 🙏🙏
क्रमशः !!!
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