BHAGAVAD GITA 2:3
कैलब्यं माँ स्म गमः पार्थ नेतत्वय्युपपद्धति।
क्षुद्रम ह्रदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप।।३।।
कैलब्यं :-नपुंसकता; माँ स्म :-मत; गमः-प्राप्त हो; पार्थ :-हे पृथा पुत्र; न:- कभी नहीं; एतत:-यह; त्वयि:-तुमको; उपपद्यते:-शोभा देता है; क्षुद्रम:-तुच्छ; ह्रदय:-ह्रदय की; दौर्बल्यम:-दुर्बलता; त्यक्त्वा :-त्याग कर; उत्तिष्ठ:-खड़ा हो; परन्तप:-हे शत्रुओं का दमन करने वाले।
हे पृथापुत्र ! हीन नपुंसकता को प्राप्त मत होओ। यह तुम्हे शोभा नहीं देती। हे शत्रुओं के दमनकर्ता ! ह्रदय की क्षुद्र दुर्बलता को त्याग कर युद्ध के लिए खड़े होओ।
तात्पर्य :-अर्जुन को पृथापुत्र के रूप में सम्बोधित किया गया है। पृथा कृष्ण के पिता वासुदेव की बहन थी,अतः कृष्ण के साथ अर्जुन का रक्त का सम्बन्ध था। यदि क्षत्रिय पुत्र लड़ने से मना करता है तो वह नाम का क्षत्रिय है और यदि ब्राह्मण पुत्र अपवित्र कार्य करता है तो वह नाम का ब्राह्मण है। ऐसे क्षत्रिय तथा ब्राह्मण अपने पिता के अयोग्य पुत्र होते हैं,अतः कृष्ण यह नहीं चाहते थे कि अर्जुन अयोग्य क्षत्रिय पुत्र कहलाये। अर्जुन कृष्ण का घनिष्टतम मित्र था और कृष्ण प्रत्यक्ष रूप से उसके रथ का संचालन कर रहे थे, किंतु इन सब गुणों के होते हुए भी यदि अर्जुन युद्धभूमि को छोड़ता है तो वह अत्यंत निंदनीय कार्य करेगा।
अतः कृष्ण ने कहा कि ऐसी प्रवृति अर्जुन के व्यक्तित्व को शोभा नहीं देती। अर्जुन यह तर्क कर सकता था कि वह परम पूज्य भीष्म तथा स्वजनों के प्रति उदार दृष्टिकोण के कारण युद्धभूमि छोड़ रहा है,किन्तु कृष्ण ऐसी उदारता को केवल ह्रदय दौर्बल्य मानते हैं। ऐसी झूठी उदारता का अनुमोदन एक भी शास्त्र नहीं करता। अतः अर्जुन जैसे व्यक्ति को कृष्ण के प्रत्यक्ष निर्देशन में ऐसी उदारता या तथाकथित अहिंसा का परित्याग कर देना चहिये।
क्रमशः !!!
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