रविवार, 28 मार्च 2021

BHAGAVAD GITA 2:56

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दुःखेष्वनुद्विग्नमनाः सुखेषु विगतस्पृहः। 

वीतरागभयक्रोधः स्थितधीर्मुनिरुच्यते।।५६।।

दुःखेषु -तीनों तापों में;अनुद्विग्नमनाः-मन में विचलित हुए बिना; सुखेषु -सुख में; विगत -स्पृहः -रुचिरत होने; वीत -मुक्त; राग -आसक्ति; भय-भय; क्रोधः -तथा क्रोध से; स्थित -धीः -स्थिर मन वाला; मुनिः-मुनि; उच्यते कहलाता है। 

जो त्रय तापों के होने पर भी विचलित नहीं होता अथवा सुख में प्रसन्न नहीं होता और जो आसक्ति,भय तथा क्रोध से मुक्त है,वह स्थिर मन वाला मुनि कहलाता है। 

तात्पर्य :- मुनि शब्द का अर्थ है वह जो शुष्क चिंतन के लिए मन को अनेक प्रकार से उद्वेलित करे,किन्तु किसी तथ्य पर न पहुँच सके। कहा जाता है की प्रत्येक मुनि का अपना-अपना दृष्टिकोण होता है और जब एक मुनि अन्य मुनियों से भिन्न न हो तब तक उसे वास्तविक मुनि नहीं कहा जा सकता। न चासावृषिर्यस्य मतं न भिन्नं ( महाभारत वनपर्व ३१३.११७ )किन्तु जिस स्तधीः  मुनि का भगवान् ने यहाँ उल्लेख किया है वह सामान्य मुनि से भिन्न है। स्तधीः मुनि सदैव कृष्णभावनाभावित रहता है क्योंकि वह सारा सृजनात्मक चिंतन पूरा कर कर चुका होता है। वह प्रशांत निःशेषः मनोरथान्तर (स्तोत्र रत्न ४३ ) कहलाता है या जिसने शुष्क चिंतन की अवस्थ पार कर ली है और इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि भगवान् श्रीकृष्ण या वासुदेव ही सब कुछ है (वासुदेवःसर्वमतिः स महात्मा सदुर्लभः ) वह स्थिरचित मुनि कहलाता है। ऐसा कृष्णभावनाभावित व्यक्ति तीन तापों के संघात से तनिक भी विचलित नहीं होता क्योंकि वह इन कष्टों को भगवतकृपा के रूप में लेता है और पूर्ण पापों के कारण अपने को अधिक कष्ट के लिए योग्य मानता है और वह देखता है कि सारे दुःख भगवत्कृपा से रंचमात्र रह जाते हैं। इसी प्रकार जब वह सुखी होता है तो अपने को सुख के लिए अयोग्य मानकर इसका भी श्रेय भगवान् को देता है। वह सोचता है कि भगवत्कृपा से ही वह ऐसी सुखद स्थिति में है और भगवान् की सेवा और अच्छी तरह से कर सकता है। और भगवान की सेवा के लिए तो वह सदैव साहस करने के लिए सन्नद्ध रहता है। वह राग या विराग से प्रभावित नहीं होता। राग का अर्थ होता है अपनी इन्द्रियतृप्ति के लिए वस्तुओं को ग्रहण करना और विराग का अर्थ है ऐसी इन्द्रिय आसक्ति का आभाव। किन्तु कृष्णभावनामृत में स्थिर व्यक्ति में न राग होता है न विराग क्योंकि उसका पूरा जीवन भगवत्सेवा में अर्पित रहता है। फलतः सारे प्रयास असफल रहने पर भी वह क्रुद्ध नहीं होता। चाहे विजय हो या न हो, कृष्णभावनाभावित व्यक्ति अपने सकल्प का पक्का होता है। 

क्रमशः !!!🙏🙏      

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