सोमवार, 15 मार्च 2021

BHAGAVAD GITA 2:42 & 2:43

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यामिमां पुष्पितां वाचं प्रवदन्त्यविपश्चितः। 

               वेदवादरताः पार्थ नान्यदस्तीति वादिनः।।४२।।

कामात्मानः स्वर्गपरा जन्मकर्मफ़लपर्दाम। 

                क्रियाविशेषबहुलां भोगैश्वर्यगतिं प्रति।।४३।।

यामिमां -ये सब; पुष्पितां -दिखावटी; वाचम -शब्द; प्रवदन्ति-कहते हैं; अविपश्चितः-अल्पज्ञ व्यक्ति;वेद -वाद-रताः-वेदों के अनुयायी; पार्थ -हे पार्थ; न-कभी नहीं; अन्यतः - अन्य कुछ; अस्ति है; इति -इस प्रकार; वादिनः -बोलने वाले;काम -आत्मनः -इन्द्रितृप्ति के इच्छुक;स्वर्ग-परा -स्वर्गप्राप्ति के इच्छुक; जन्म -कर्म-फल-पर्दाम -उत्तम जन्म तथा अन्य सकाम कर्म फल प्रदान करने वाला; क्रिया-विशेष -भड़कीले उत्सव; बहुलाम-विविध; भोग -इन्द्रियतृप्ति; ऐश्वर्य  -तथा ऐश्वर्य; गतिम् -प्रगति; प्रति -की ओर। 

अल्पज्ञानी मनुष्य वेदों के उन अलंकारिक शब्दों के प्रति अत्यधिक आसक्त रहते हैं,जो स्वर्ग की प्राप्ति,अच्छे जन्म,शक्ति इत्यादि के लिए विविध सकाम कर्म करने की संस्तुति करते हैं। इन्द्रियतृप्ति तथा ऐश्वर्यमय जीवन की अभिलाषा के कारण वे कहते हैं कि इससे बढ़कर और कुछ नहीं है। 

तात्पर्य :- साधारणतः सब लोग अत्यंत बुद्धिमान नहीं होते और वे अज्ञान के कारण वेदों के कर्मकाण्ड भाग में बताये गए सकाम कर्मों के प्रति अत्यधिक आसक्त रहते हैं। वे स्वर्ग में जीवन का आनंद उठाने के लिए इन्द्रियतृप्ति कराने वाले प्रस्तावों से अधिक और कुछ नहीं चाहते,जहाँ मदिरा तथा तरुणियाँ उपलब्ध हैं और भौतिक ऐश्वर्य सर्व सामान्य है। वेदों में स्वर्ग लोक पहुँचने के लिए अनेक यज्ञों की संस्तुति है.जिनमे ज्योतिष्टोम यज्ञ प्रमुख है। वास्तव में वेदों में कहा गया है कि जो स्वर्ग जाना चाहता है उसे ये यज्ञ संपन्न करने चाहिए और अल्पज्ञानी पुरुष सोचते हैं  कि वैदिक ज्ञान का सारा अभिप्राय इतना ही है। जिस प्रकार मुर्ख लोग विषैले वृक्षों के फूलों के प्रति बिना यह जाने कि इस आकर्षण का फल क्या होगा,आसक्त रहते हैं उसी प्रकार अज्ञानी व्यक्ति स्वर्गिक ऐश्वर्य तथा तज्जनित इन्द्रियभोग के प्रति आकृष्ट रहते हैं। 

वेदों के कर्मकाण्ड भाग में कहा गया है -अपाम सोममृता अभूम तथा अक्षय्यं ह वै चातुर्मासस्ययाजिनः सुकृतं भवति। दूसरे शब्दों में,जो लोग चातुर्मास तप करते हैं वे अमर तथा सदा सुखी रहने के लिए सोम -रस पीने के अधिकारी हो जाते हैं। यहाँ तक कि इस पृथ्वी में भी कुछ लोग सोम -रस पीने के लिए अत्यंत इच्छुक रहते हैं जिससे वे बलवान बने और इन्द्रियतृप्ति का सुख पाने में समर्थ हों। ऐसे लोगों को भवबंधन से मुक्ति में कोई श्रद्धा नहीं होती और वे वैदिक यज्ञों की तड़क-भड़क में विशेष आसक्त रहते हैं। वे सामान्यतया विषयी होते हैं और जीवन में आनन्द के अतिरिक्त और कुछ नहीं चाहते। कहा जाता है कि स्वर्ग में नन्दन-कानन नामक अनेक उद्यान हैं,जिनमे दैवी सुंदरी स्त्रियों का संग तथा प्रचुर मात्रा में सोम -रस उपलब्ध रहता है। ऐसा शारीरिक सुख निस्सन्देह विषयी है,अतः ये वे लोग हैं,जो भौतिक जगत के स्वामी बनकर ऐसे भौतिक अस्थायी सुख के प्रति आसक्त हैं।

क्रमशः-!!! 🙏🙏            

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