शनिवार, 27 मार्च 2021

BHAGAVAD GITA 2:55

 🙏🙏

श्रीभगवानुवाच

प्रजहाती यदा कामान्सर्वान्पार्थ मनोगतान। 

आत्मन्येवात्मना तुष्टः स्थित्प्रगिस्तदोच्यते।।५५।।  

श्री-भगवानुवाच -श्रीभगवान ने कहा; परजहाती-त्यागता है; यदा -जब; कामान -इन्द्रियतृप्ति की इच्छाएं; सर्वान-सभी प्रकार की; पार्थ -हे पृथापुत्र; मनः-गतान -मनोरथ का; आत्मनि -आत्मा की शुद्ध अवस्था में;एव -निश्चय ही; आत्मना-विशुद्ध मन से; तुष्टः-संतुष्ट,प्रसन्न; स्थित-प्रज्ञः-अध्यात्म में स्थित; तदा -उस समय,तब; उच्यते -कहा जाता है। 
श्री भगवान् ने कहा -हे पार्थ ! जब मनुष्य मनोधर्म से उत्पन्न होने वाली इन्द्रियतृप्ति की समस्त कामनाओं का परित्याग कर देता है और जब इस तरह से विशुद्ध हुआ उसका मन आत्मा में संतोष प्राप्त करता है तो वह विशुद्ध दिव्य चेतना को प्राप्त (स्थित प्रज्ञ) कहा जाता है। 

तात्पर्य :-श्रीमदभागवत में पुष्टि हुई है कि जो मनुष्य पूर्णतया कृष्णभावनाभावित या भगवद्भक्त होता है उसमे महर्षियों के समस्त सद्गुण पाए जाते हैं,किन्तु जो व्यक्ति अध्यात्म में स्थित नहीं होता उसमे एक भी योग्यता नहीं होती क्योंकि वह अपने मनोधर्म पर ही आश्रित रहता है। फलतः यहाँ ठीक ही कहा गया है कि व्यक्ति को मनोधर्म द्वारा कल्पित सारी विषय-वासनाओं को त्यागना होता है  कृत्रिम साधन से इनको रोक पाना सम्भव नहीं। किन्तु यदि कोई कृष्णभावनामृत में लगा हो तो सारी विषय-वासनाएं स्वतः बिना किसी प्रयास के दब जाती हैं। अतः मनुष्य को बिना किसी झिझक के कृष्णभावनामृत में लगना होगा क्योंकि यह भक्ति उसे  दिव्य चेतना प्राप्त करने में सहायक होगी। अत्यधिक उन्नत जीवात्मा (महात्मा ) अपने आपको परमेश्वर का शाश्वत दास मानकर आत्मतुष्ट रहता है। ऐसे आध्यात्मिक पुरुष  के पास भौतिकता से उत्पन्न एक भी विषय-वासना फटक नहीं पाती। वह अपने को निरन्तर भगवान् के सेवक मानते हुए सहज रूप में सदैव प्रसन्न रहता है।

क्रमशः !!!🙏🙏      

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