BHAGAVAD GITA 2:54
🙏🙏
अर्जुन उवाच
स्थितिप्रज्ञस्य का भाषा समाधिस्थस्य केशवः।
स्थितधौः कि किमासीत ब्रजेत किम।।५४।।
अर्जुनः उवाच -अर्जुन ने कहा; स्थित -प्रज्ञस्य -कृष्णभावनामृत में स्थिर हुए व्यक्ति को; का -क्या; भाषा -भाषा; समाधि-स्थस्य -समाधि में स्थित पुरुष का; केशव -हे कृष्ण ! स्थित-धीः-कृष्णभावनामृत में स्थिर व्यक्ति; किम -क्या; परभाषेत -बोलता है; किम-कैसे; आसीत-रहता है; ब्रजेत -चलता है; किम -कैसे।
अर्जुन ने कहा -हे कृष्ण ! अध्यात्म में लीन चेतना वाले व्यक्ति के क्या लक्षण हैं ? वह कैसे बोलता है तथा उसकी भाषा क्या है ? वह किस तरह बैठता और चलता है।
तात्पर्य :- जिस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति के उसकी विशिष्ट स्थिति के अनुसार कुछ लक्षण होते हैं उसी प्रकार कृष्णभावनामृत पुरुष का विशिष्ट स्वभाव होता है -यथा उसका बोलना,चलना,सोचना आदि। जिस प्रकार धनी पुरुष के कुछ लक्षण होते हैं,जिनसे वह धनवान जाना जाता है,जिस तरह रोगी अपने रोग के लक्षणों से रुग्ण जाना जाता है या कि विद्वान अपने गुणों से विद्वान जाना जाता है,उसी तरह कृष्ण की दिव्य चेतना से युक्त व्यक्ति अपने विशिष्ट लक्षणों से जाना जाता है। इन लक्षणों को भगवद्गीता से जाना जा सकता है। किन्तु सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कृष्णभावनाभावित व्यक्ति किस तरह बोलता है,क्योंकि वाणी ही किसी मनुष्य का सबसे महत्वपूर्ण गुण है। कहा जाता है कि मूर्ख का पता तब तक नहीं लगता जब तक वह बोलता नहीं। एक बने ठने मूर्ख को तब तक नहीं पहचाना जा सकता जब तक वह बोले नहीं,किन्तु बोलते ही उसका यथार्थ रूप प्रकट हो जाता है। कृष्णभावनाभावित व्यक्ति का सर्वप्रमुख लक्षण यह है कि वह केवल कृष्ण तथा उन्ही से सम्बद्ध विषयों के बारे में बोलता है। फिर तो अन्य लक्षण स्वतः प्रकट हो जाते हैं,जिनका उल्लेख आगे किया गया है।
क्रमशः !!!🙏🙏
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