मंगलवार, 16 मार्च 2021

BHAGAVAD GITA 2:44

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भोगैश्वर्यप्रसक्तानां तयापहृतचेतसाम। 

व्यवसायात्मिका बुद्धिः समाधौ न विधीयते।।४४।।

भोग -भौतिक भोग; ऐश्वर्य -तथा ऐश्वर्य के प्रति; प्रसक्तानां-अशक्तों के लिए; तया -ऐसी वस्तुओं से;  अपहृत -चेतसाम-मोहग्रसित चित्त वाले;व्यवसाय -अत्मिका -दृढ निश्चय वाली; बुद्धिः-भगवान की भक्ति; समाधौ-नियंत्रित मन में; न -कभी नहीं; विधीयते-घटित होती है। 

      जो लोग इन्द्रियभोग तथा भौतिक ऐश्वर्य के प्रति अत्यधिक आसक्त होने से ऐसी वस्तुओं से मोहग्रस्त हो जाते हैं,उनके मनों में भगवान् के प्रति दृढ़ निश्चय नहीं होता। 

तात्पर्य :-समाधि का अर्थ है "स्थिर मन "वैदिक शब्दकोश निरूक्ति के अनुसार -सम्यग आधियति स्मिन्नात्मतयाथात्म्यम -जब मन आत्मा को समझने में स्थिर रहता है तो उसे समाधि । जो लोग इन्द्रियभोग में रुचि रखते हैं अथवा जो ऐसी क्षणिक वस्तुओं से मोहग्रस्त हैं उनके लिए समाधि कभी भी सम्भव नहीं है। माया के चक्कर में पड़कर वे न्यूनाधिक पतन को प्राप्त होते हैं। 

क्रमशः !!! 🙏🙏
















 

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