BHAGAVAD GITA 2:34
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अकीर्ति चापि भूतानि कथयिष्यन्ति तेव्ययाम।
सम्भावितस्य चाकीर्तिर्मरणादतिरिच्यते।।३४।।
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अकीर्तिम -अपयश; च -भी; अपि -इसके अतिरिक्त; भूतानि -सभी लोग; कथयिष्यन्ति -कहेंगे; ते- तुम्हारे; अव्ययाम -सदा के लिए; सम्भावितस्य -सम्मानित व्यक्ति के लिए; च -भी;अकीर्ति -अपयश,अपकीर्ति;मरणत -मृत्यु से भी; अतिरिच्यते - अधिक होती है।
लोग सदैव तुम्हारे अपयश का वर्णन करेंगे और सम्मानित व्यक्ति के लिए अपयश तो मृत्यु से भी बढ़कर है।
तात्पर्य :-अब अर्जुन के मित्र तथा गुरु के रूप में भगवान् कृष्ण अर्जुन को युद्ध विमुख न होने का अंतिम निर्णय देते हैं। वे कहते हैं, "अर्जुन ! यदि तुम युद्ध प्रारम्भ होने से पूर्व ही युद्धभूमि छोड़ देते हो तो लोग तुम्हें कायर कहेंगे। और यदि तुम सोचते हो कि लोग गाली देते रहें,किन्तु तुम युद्धभूमि से भागकर अपनी जान बचा लोगे तो मेरी सलाह है कि तुम्हें युद्ध में मर जाना ही श्रेयस्कर होगा। तुम जैसे सम्माननीय व्यक्ति के लिए अपकीर्ति मृत्यु से भी बुरी है। अतः तुम्हें प्राणभय से भागना नहीं चाहिए,युद्ध में मर जाना ही श्रेयस्कर होगा। इससे तुम मेरी मित्रता का दुरुप्रयोग करने तथा समाज में अपनी प्रतिष्ठा खोने के अपयश से बच जाओगे।"
अतः अर्जुन के लिए भगवान् का अंतिम निर्णय था की वह संग्राम से पलायन न करे अपितु युद्ध में मरे।
क्रमशः !!!
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