गुरुवार, 7 जनवरी 2021

BHAGVAD GITA

 ततः शंखश्च भेर्यश्च पणवानकगोमुखाः। 

सहसेवाभ्यहन्यन्त स शब्दस्तुमुलोभवत।।१३।।  

ततः-तत्पश्चात; शंखा:-शंख; च:- भी; भेर्य:-बड़े-बड़े ढोल,नगाड़े; च:

तथा;पणव-आनक:-ढोल तथा मृदंग; गो-मुखा:-शृंग; सहसा-अचानक;एव-निश्चय ही; अभ्यहन्यन्त:-एक साथ बजाए गए; सः-वह; शब्दः-समवेत,स्वर; तुमुल:-कोलाहलपूर्ण; अभवत -हो गया।

अर्थात :-तत्पश्चात शंख, नगाड़े,बिगुल,तुरही तथा रण सींग सहसा एक साथ बज उठे। तब अत्यंत कोलाहल के साथ सभी योद्धाओं ने अपने-अपने शंख बजाये। 


बुधवार, 6 जनवरी 2021

BHAGVAD GITA

 तस्य सञ्जनयन्हर्ष कुरुवृद्धः पितामहः। 

सिंहनादं विनधोच्चे:शंखं दध्मौ प्रतापवान।।१२।।

 तस्य:-उसका; सञ्जनयन:-बढ़ाते हुए; हर्षं:-हर्ष; कुरुवृद्ध:-कुरुवंश के वयोवृद्ध;पितामहः-पितामह; सिंह -नादम:-सिंह की सी गर्जना; विनध:-गरज कर; उच्चेः-उच्च स्वर से;शंखं:-शंख; दध्मौ:-बजाया; प्रतापवान:-बलशाली। 

तब कुरुवंश के वयोवृद्ध परम प्रतापी एवं वृद्ध पितामह ने सिंह -गर्जना की सी ध्वनि करने वाले अपने शंख को उच्च स्वर से बजाया,जिससे दुर्योधन को हर्ष हुआ। 

अर्थात:- कुरुवंश के वयोवृद्ध पितामह अपने पौत्र दुर्योधन का मनोभाव जान गये और उसके प्रति अपनी स्वाभाविक दयावश उन्होंने उसे प्रसन्न करने के लिए अत्यंत उच्च स्वर से अपना शंख बजाया,जो उनकी सिंह के समान स्थिति के अनुरूप था। अप्रत्यक्ष रूप में शंख के द्वारा प्रतीकात्मक ढंग से उन्होंने अपने हताश पौत्र दुर्योधन को बता दिया कि उन्हें युद्ध में विजय की आशा नहीं है क्योंकि दूसरे पक्ष में साक्षात भगवान् श्रीकृष्ण हैं। फिर भी युद्ध का मार्गदर्शन करना उनका कर्तब्य था और इस सम्बन्ध में  कसर नहीं रखेंगे। 

क्रमशः !!!!

मंगलवार, 5 जनवरी 2021

BHAGVAD GITA

अध्याय १ श्लोक ११  

अयनेषु च सर्वेषु यथाभागमवस्थिताः। 

भीष्ममेवाभिरक्षन्तु भवन्तः सर्व एव हि।।११।।

अयनेषु:-मोर्चों में; च:-भी; सर्वेषु:-सर्वत्र; यथा -भागम:-अपने-अपने स्थानों पर; अवस्थिताः-स्थित; भीष्मम:-भीष्मपितामह की; एव:-निश्चय ही। 

अतएव  सैन्यव्यूह  में अपने-अपने मोर्चों पर खड़े रहकर आप सभी भीष्मपितामह को पूरी-पूरी सहायता दें। 

अर्थात:- भीष्मपितामह के शौर्य की प्रशंसा करने के बाद दुर्योधन ने सोचा कि कहीं अन्य योद्धा यह न समझ लें कि उन्हें कम महत्त्व दिया जा रहा है

अतः दुर्योधन ने अपने सहज कूटनीतिक ढंग से स्थिति सँभालने के उद्देश्य से उपर्युक्त शब्द कहे। 

उसने बलपूर्बक कहा कि भीष्मदेव निस्सन्देह महानतम योद्धा हैं, किन्तु अब वे वृद्ध हो चुके हैं,अतः प्रत्येक सैनिक को चाहिए कि चारों ओर से उनकी सुरक्षा का विशेष ध्यान रखें। हो सकता है कि वे किसी एक दिशा में युद्ध करने में लग जायँ और शत्रु इस व्यस्तता का लाभ उठा ले। अतः यह आवश्यक है कि अन्य योद्धा मोर्चों पर अपनी -अपनी स्थिति पर अडिग रहें और शत्रु को व्यूह न तोड़ने दें। 

दुर्योधन को पूर्ण विश्वास था कि कुरुओं की विजय भीष्मदेव की उपस्थिति पर निर्भर है। उसे युद्ध में भीष्मदेव तथा द्रोणाचर्य के पूर्ण सहयोग की आशा थी क्योंकि वह अच्छी तरह जानता था कि इन दोनों ने उस समय एक शब्द भी नहीं कहा था,जब द्रौपदी को असहाय अवस्था में भरी सभा में नग्न किया जा रहा था और जब उसने उनसे न्याय की भीख मांगी थी। यह जानते हुए भी कि इन दोनों सेनापतियों के मन में पांडवों के लिए स्नेह था ,दुर्योधन को आशा थी कि वे इस स्नेह को उसी तरह त्याग देंगें, जिस तरह उन्होंने धूत-क्रीड़ा के अवसर पर किया था। 

क्रमशः !!!! 


सोमवार, 4 जनवरी 2021

BHAGVAD GITA

अध्याय १ श्लोक १०  

अपर्याप्तं तदस्माकं बलं भीष्माभिरक्षितम। 

पर्याप्तं त्विदमेतेषां बलं भीमाभिरक्षितम।। 

अपर्याप्तं:-अपरिमेय; तत:-वह; अस्माकम:-हमारी; बलं:-शक्ति; भीष्म:- भीष्मपितामह द्वारा; अभिरक्षितम:- भलीभांति संरक्षित; पर्याप्तं:-सीमित; तू :-लेकिन; इदं:-यह सब; एतेषां:-पांडवों की; बलं:-शक्ति; भीम:-भीम द्वारा; अभिरक्षितम:- सुरक्षित है। 

हमारी शक्ति अपरिमेय है और हम सब पितामह द्वारा भलीभांति संरक्षित है, जबकि पांडवों की शक्ति भीम द्वारा भलीभांति संरक्षित होकर भी सीमित है। 
अर्थात:-यहाँ पर दुर्योधन ने तुलनात्मक शक्ति का अनुमान प्रस्तुत किया है। वह सोचता है कि अत्यंत अनुभवी सेनानायक भीष्मपितामह द्वारा विशेष रूप से संरक्षित होने के कारण उसकी सशस्त्र सेनाओ की शक्ति अपरिमेय है। दूसरी ओर पांडवों की सेनाएँ सीमित हैं क्योंकि उनकी सुरक्षा एक कम अनुभवी नायक भीम द्वारा की जा रही है जो भीष्म की तुलना में नगण्य है। दुर्योधन सदैव भीम से ईर्ष्या करता था क्योंकि वह जनता था कि यदि उसकी मृत्यु कभी हुई भी तो वह भीम के द्वारा ही होगी। किन्तु साथ ही उसे दृढ़ विश्वास था कि भीष्म की उपस्थिति में उसकी विजय निश्चित है क्योंकि भीष्म कहीं अधिक उत्कृष्ट सेनापति है। वह युद्ध में विजयी होगा,यह उसका दृढ़ निश्चय था। 

क्रमशः !!!!!


रविवार, 3 जनवरी 2021

BHAGVAD GITA

 अध्याय १ श्लोक ९ 

अन्ये च बहवः श्रुरा मदर्थे त्यक्तजीविताः। 
नानाशस्त्रप्रहरणाः सर्वे युद्धविशारदाः।।९।। 

अन्ये:-अन्य सब; च:-भी;बहवः-अनेक; श्रुरा:-बीर; मदर्थे:-मेरे लिए;त्यक्तजीविताः-जीवन का उत्सर्ग करने वाले; नाना:-अनेक; शस्त्र:-आयुध;परहरणाः-से युक्त,सुसज्जित; सर्वे-सभी; युद्ध-विशारदाः-युद्ध विद्या में निपुण। 

दुर्योधन कहते हैं,ऐसे अनेक अन्य वीर भी है,जो मेरे लिए अपना जीवन त्याग करने के लिए उद्यत हैं। वे विविध प्रकार के हथियारों से सुसज्जित हैं और युद्धविद्या में निपुण हैं।

अर्थात:- अन्य वीर जैसे जयद्रथ,कृतवर्मा,तथा शल्य का सम्बन्ध है ,वे  दुर्योधन के लिए अपने प्राणों की आहुति देने के लिए तैयार रहते थे। अर्थात यह पूर्वनिश्चित है कि वे अब पापी दुर्योधन के दल में सम्मिलित होने के कारण कुरुक्षेत्र के युद्ध में मारे जायेंगे। निस्संदेह अपने मित्रों की संयुक्त-शक्ति के कारण दुर्योधन अपनी विजय के प्रति आश्वस्त था। 

क्रमशः !!!!!

 

शनिवार, 2 जनवरी 2021

BHAGVAD GITA

 अध्याय १ श्लोक ७&८ 

अस्माकं तु विशिष्टा ये तान्निबोध द्विजोत्तम। 

नायका मम सैन्यस्य संज्ञार्थ तांब्रवीमि ते।।७।।

अस्माकं:-हमारे; तु:-लेकिन; विशिष्टा:-विशेष शक्तिशाली; ये:-जो;

तान:-उनको; निबोध:-जरा जान लीजिये; द्विजोत्तम:-हे ब्राह्मणश्रेष्ठ;

नायकाः-सेनापति; मम:-मेरी; सैन्यस्य:-सेना के; संज्ञार्थ:-सूचना के लिए 

तान:-उन्हें; ब्रवीमि:-बता रहा हूँ; ते:-आपको। 

अर्थात :-किन्तु हे ब्राह्मणश्रेठ !आपकी सूचना  लिए मैं अपनी सेना के उन नायकों के विषय में बताना चाहूंगा,जो मेरी सेना को संचालित करने में विशेष रूप से निपुण हैं। 

भवान्भीष्मश्च कर्णश्च कृपश्च समितिंजयः। 

अश्वत्त्थामा विकर्णश्च सोमदत्तिस्तथैव च।।८।।

भवान:-आप; भीष्मः-भीष्मपितामह;च:-भी; कर्ण:-कर्ण; च:-और;

कृप:-कृपाचार्य; समितिञ्जयः -सदा संग्रामविजयी; अश्वत्त्थामा:-अश्वत्त्थामा; विकर्ण: -विकर्ण; च:-तथा; सोमदतीः-सोमदत्त का पुत्र; 

तथा:-भी; एव:-निश्चय ही; च:- भी। 

अर्थात :- मेरी सेना में स्वयं आप भीष्म, कर्ण, कृपाचार्य, अश्वत्थामा, विकर्ण तथा सोमदत्त का पुत्र भूरिश्रवा आदि हैं,जो युद्ध में सदैव विजयी रहे हैं। 

दुर्योधन उन अद्वित्तीय युद्धवीरों का उल्लेख करता है   जो सदैव विजयी होते रहे है। विकर्ण दुर्योधन का भाई है, अश्वत्थामा द्रोणाचार्य का पुत्र है। कर्ण अर्जुन का आधा भाई है,क्योंकि वह कुंती के गर्भ से राजा पाण्डु से विवाहित होने से पूर्व उत्पन्न हुआ है। कृपाचार्य  की जुड़वां बहन के साथ द्रोणाचार्य जी ने शादी की थी। 

क्रमशः !!!!!!!!

शुक्रवार, 1 जनवरी 2021

BHAGVAD GITA

 अध्याय १ श्लोक ६ 

युधामनुश्च विक्रांत उत्तमौजाश्च वीर्यवान। 

सौभद्रो द्रौपदेयाश्च सर्व एव महारथाः।।६।।

युधामन्युः -युधामन्यु; च:-तथा; विक्रांत:-पराक्रमी; उत्तमौजा:-उत्तमौजा;

च:-तथा;वीर्यवान:-अत्यंत शक्तिशाली; सौभद्र:-सुभद्रा का पुत्र; 

द्रोपदेयाः-द्रोपदी के पुत्र; च:-तथा; सर्वे:-सभी; एव-निस्चय ही; 

महारथाः -महारथी। 

अर्थात:-इस प्रकार से दुर्योधन,द्रोणाचार्य जी से कह रहे थे कि पांडवो की सेना में पराक्रमी युधामन्यु, अत्यंत शक्तिशाली उत्तमौजा,सुभद्रा का पुत्र तथा द्रोपदी के पुत्र -ये सभी महारथी हैं। 

क्रमशः- !!!!!