बुधवार, 26 मई 2021

BHAGAVAD GITA 3:26

🙏🙏

 न बुद्धिभेदं जनयेदज्ञानाम कर्मसङ्गिनाम। 

जोषयेत्सकर्माणि विद्वान्युक्तः समचरन।। २६।। 

न -नहीं; बुद्धि-भेदम -बुद्धि का विचलन; जनयेत- उत्पन्न करें; अज्ञानम -मूर्खों का; कर्म-सङ्गिनाम -सकाम कर्मों में आसक्त; जोषयेत -नियोजित करें; सर्व -सारे; कर्माणि -कर्म; विद्वान् -विद्वान् व्यक्ति; युक्त: -लगा हुआ; तत्पर; समाचरन-अभ्यास करता हुआ। 

विद्वान् व्यक्ति को चाहिए कि वह सकाम कर्मों में आसक्त अज्ञानी पुरुषों को कर्म करने से रोके नहीं ताकि उनके मन विचलित न हों। अपितु भक्तिभाव से कर्म करते हुए वह उन्हें सभी प्रकार के कार्यों में लगाये। (जिससे कृष्णभावनामृत का क्रमिक विकास हो) 

तात्पर्य :-वेदैश्च सर्वैरहम वैद्यः -यह सिद्धांत सम्पूर्ण वैदिक अनुष्ठानों की पराकाष्ठा है। सारे अनुष्ठान,सारे यज्ञ -कृत्य तथा वेदों में भौतिक कार्यों के निर्देश हैं,  उन सबों समेत सारी वस्तुएं कृष्ण को जानने के निमित हैं, जो हमारे जीवन के चरम लक्ष्य हैं। लेकिन चूँकि बद्धजीव इन्द्रियतृप्ति के अतिरिक्त और कुछ नहीं जानते,अतः वे वेदों का अध्ययन इसी दृष्टि से करते हैं। किन्तु सकाम कर्मों तथा वैदिक अनुष्ठानों द्वारा नियमित इन्द्रियतृप्ति के माध्यम से मनुष्य धीरे -धीरे कृष्णभावनामृत को प्राप्त होता है,अतः कृष्णभावनामृत में स्वरूपसिद्ध जीव को चाहिए कि अन्यों को अपना कार्य करने या समझने में वाधा न पहुँचाये,अपितु उन्हें यह प्रदर्शित करें कि किस प्रकार सारे कर्मफल को कृष्ण की सेवा में समर्पित किया जा सकता है। कृष्णभावनाभावित विद्वान् व्यक्ति इस तरह कार्य कर सकता है कि इन्द्रियतृप्ति के लिए कर्म करने वाले अज्ञानी पुरुष यह सीख लें कि किस तरह कार्य करना चाहिए और आचरण करना चाहिए। यद्धपि अज्ञानी पुरुष को उसके कार्यों में छेड़ना ठीक नहीं होता,परन्तु यदि वह रंचभर भी कृष्णभावनाभावित है तो यह वैदिक विधियों की परवाह न करते हुए सीधे भगवान् की सेवा में लग सकता है। ऐसे भाग्यशाली व्यक्ति को वैदिक अनुष्ठान करने की आवश्यकता नहीं रहती, क्योंकि प्रत्यक्ष कृष्णभावनामृत के द्वारा उसे वे सारे फल प्राप्त हो जाते हैं,जो उसे अपने कर्तव्यों के पालन करने से प्राप्त होते हैं। 

क्रमशः !!!🙏🙏           

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें