मंगलवार, 25 मई 2021

BHAGAVAD GITA 3:25

🙏🙏 

सक्ताः कर्मण्यविद्वांसो यथा कुर्वन्ति भारत। 

कुर्याद्विद्वांस्तथासक्तश्रिच्कीर्षर्लोकसंग्रहम।।२५।।

सक्ताः-आसक्त; कर्मणि -नियत कर्मों में; अविद्वांसः -अज्ञानी; यथा - जिस तरह; कुर्वन्ति -करते हैं; भारत- हे भरतवंशी; कुर्यात -करना चाहिए; विद्वान् -विद्वान् ; तथा-उसी तरह; असक्त -अनासक्त; चिकीर्षुः -चाहते हुए भी,इच्छुक; लोकसंग्रहम -सामान्य जन। 

जिस प्रकार अज्ञानी -जन फल की आसक्ति से कार्य करते हैं,उसी तरह विद्वान् जनों को चाहिए कि वे लोगों को उचित पथ पर ले जाने के लिए अनासक्त रहकर कार्य करें। 

तात्पर्य :-एक कृष्णभावनाभावित मनुष्य तथा एक कृष्णभवनाहीन व्यक्ति में केवल इच्छाओं का भेद होता है। कृष्णभावनाभावित व्यक्ति कभी ऐसा कोई कार्य नहीं करता, जो कृष्णभावनामृत के विकास में सहायक न हो। यहाँ तक कि वह उस अज्ञानी पुरुष की तरह कर्म कर सकता है,जो भौतिक कार्यों में अत्यधिक आसक्त रहता है। किन्तु इनमे से एक ऐसे कार्य अपनी इन्द्रियतृप्ति के लिए करता है, जबकि दूसरा कृष्ण की तुष्टि के लिए। अतः कृष्णभावनाभावित व्यक्ति को चाहिए कि वह लोगों को यह प्रदर्शित करे कि किस तरह कर्मफलों को कृष्णभावनामृत कार्य में नियोजित किया जाता है। 

क्रमशः !!!🙏🙏       

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