बुधवार, 5 मई 2021

BHAGAVAD GITA 3:12

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इष्टान्भोगान्हि वो देवा दास्यन्ते यज्ञभाविताः। 

तैर्दत्तानप्रदायैभ्यो यो भुङ्गे स्तेन एव सः।। १२।। 

इष्टान-वांछित; भोगान -जीवन की आवश्यकताएं; हि -निश्चय ही; वः -तुम्हें; देवा -देवतागण; दास्यन्ते -प्रदान करेंगे; यज्ञ-भाविताः यज्ञ संपन्न करने से प्रसन्न होकर; तैः -  उनके द्वारा; दत्तान-प्रदत्त वस्तुएं; अप्रदाय-बिना भेंट किये; एभ्यः - देवताओं को; यः-जो; भुङ्गे -भोग करता है; स्तेन -चोर; एव -निश्चय ही; सः -वह।

जीवन की विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाले विभिन्न देवता यज्ञ संपन्न होने पर प्रसन्न होकर तुम्हारी सारी आवश्यकताओं की पूर्ति करेंगे। किन्तु जो इन उपहारों को देवताओं को अर्पित किये बिना भोगता है, वह निश्चित रूप से चोर है। 

तात्पर्य :-देवतागण भगवान् विष्णु द्वारा भोग -सामग्री प्रदान करने के लिए अधिकृत किये गए हैं। अतः नियत यज्ञों द्वारा उन्हें अवश्य संतुष्ट करना चाहिए। वेदों में विभिन्न देवताओं के लिए भिन्न -भिन्न प्रकार के  यज्ञों की संस्तुति है , किन्तु वे सब अन्ततः भगवान् को ही अर्पित किये जाते हैं किन्तु जो यह नहीं समझ सकता कि भगवान् क्या है,उसके लिए देवयज्ञ विधान है। अनुष्ठानकर्त्ता  भौतिक गुणों के अनुसार वेदों में विभिन्न प्रकार के यज्ञों का विधान है। विभिन्न देवताओं की पूजा भी उसी आधार पर अर्थात गुणों के अनुसार की जाती है। उदाहरणार्थ, मांसाहारियों को देवी काली की पूजा करने के लिए कहा जाता है, जो भौतिक प्रकृति की घोर रूपा हैं और देवी के समक्ष पशुबलि का आदेश है। किन्तु जो सतोगुणी हैं, उनके लिए विष्णु की दिव्य पूजा बताई जाती है। अन्ततः समस्त यज्ञों का ध्येय उत्तरोत्तर दिव्य पद प्राप्त करना है। सामान्य व्यक्तियों के लिए कम से कम पांच यज्ञ आवश्यक हैं, जिन्हे पञ्चमहायज्ञ कहते हैं। 

किन्तु मनुष्य को यह जानना चाहिए कि जीवन की सारी आवश्यकताएं भगवान् के देवता प्रतिनिधियों द्वारा ही पूरी की जाती है। कोई कुछ बना नहीं सकता। उदाहरणार्थ, मानव समाज के भोज्य पदार्थों को लें। इन भोज्य पदार्थों में शाकाहारियों के लिए अन्न,फल , शाक, दूध , चीनी , आदि हैं तथा मांसाहारियों के लिए मांसादि,जिनमे से कोई भी पदार्थ मनुष्य नहीं  सकता। एक और उदहारण लें -यथा ऊष्मा प्रकाश, जल, वायु अदि जो जीवन के लिए आवश्यक है,इनमे से किसी को भी बनाया नहीं जा सकता। परमेश्वर के बिना न तो प्रचुर प्रकाश मिल सकता है, न चांदनी, वर्षा, या प्रातःकालीन समीर ही,जिनके बिना मनुष्य जीवित नहीं रह सकता। स्पष्ट है कि हमारा जीवन भगवान् द्वारा प्रदत्त वस्तुओं पर आश्रित है। यहाँ तक कि हमें अपने उत्पादन-उद्द्मो के लिए अनेक कच्चे मालों की आवश्यकता होती है यथा धातु, गंधक , पारद ,मैंगनीज तथा अन्य अनेक आवश्यक वस्तुएं, जिनकी पूर्ति भगवान् के प्रतिनिधि इस उद्देश्य से करते हैं कि हम इनका समुचित उपयोग करके आत्म-साक्षात्कार के लिए अपने आपको स्वस्थ एवं पुष्ट बनायें,जिससे जीवन का चरम लक्ष्य अर्थात भौतिक जीवन -संघर्ष से मुक्ति प्राप्त हो सके। यज्ञ संपन्न करने से मानव जीवन का यह लक्ष्य प्राप्त हो जाता है। यदि हम जीवन उद्देश्य को भूल कर भगवान् के प्रतिनिधियों से अपनी इन्द्रियतृप्ति के लिए वस्तुएं लेते रहेंगे और इस संसार में अधिकाधिक फंसते जाएंगे, जो कि सृष्टि का उद्देश्य नहीं है तो निश्चय ही हम चोर हैं और इस तरह हम प्रकृति के नियमों द्वारा दण्डित होंगे। चोरों का समाज कभी सुखी नहीं रह सकता क्योंकि उनका कोई जीवन लक्ष्य नहीं होता। उन्हें तो केवल इन्द्रियतृप्ति की चिंता रहती है, वे नहीं जानते कि यज्ञ किस तरह किये जाते हैं। किन्तु चैतन्य महाप्रभु ने यज्ञ संपन्न करने की सरलतम विधि का प्रवर्तन किया। यह है कि संकीर्तन यज्ञ जो संसार के किसी भी व्यक्ति द्वारा, जो कृष्ण भावनामृत के सिद्धांतो को अंगीकार करता है,संपन्न किया जा सकता है। 🙏🙏

क्रमशः !!! 

      

  

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