मंगलवार, 13 अप्रैल 2021

BHAGAVAD GITA 2:68

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तस्माद्यस्य महाबाहो निगृहीतानि सर्वशः। 

इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता।।६८।।

तस्मात् -अतः;यस्य -जिसकी; महाबाहो-हे महाबाहु ; निगृहीतानि -इस तरह वशीभूत; सर्वशः-सब प्रकार से; इन्द्रियाणि-इन्द्रियां; इन्द्रिय -अर्थेभ्य-इन्द्रियविषयों से; तस्य -उसकी; प्रज्ञा -बुद्धि; प्रतिष्ठिता -स्थिर। 

अतः हे महाबाहु ! जिस प्रकार पुरुष की इन्द्रियां अपने -अपने विषयों से सब प्रकार से वितरित होकर उसके वश में हैं,उसी की बुद्धि निस्संदेह स्थिर है। 

तात्पर्य :- कृष्णभावनामृत के द्वारा या सारी इन्द्रियों  को भगवान् की दिव्य प्रेमाभक्ति में लगाकर इन्द्रियतृप्ति की बलवती शक्तियों को दमित किया जा सकता है। जिस प्रकार शत्रुओं का दमन श्रेष्ठ सेना द्वारा किया जाता है उसी प्रकार इन्द्रियों का दमन किसी मानवीय प्रयास के द्वारा नहीं,अपितु उन्हें भगवान् की सेवा में लगाए रखकर किया जा सकता है। जो व्यक्ति यह ह्रदयंगम कर लेता है कि कृष्णभावनामृत के द्वारा बुद्धि स्थिर होती है और इस कला का अभ्यास प्रामाणिक गुरु के पथ - प्रदर्शन में करता है,वह साधक अथवा मोक्ष का अधिकारी कहलाता है। 

क्रमशः !!! 🙏🙏             

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