रविवार, 28 फ़रवरी 2016

आजादी का अर्थ

आज अपने देश में आजादी के नारे सुनने पर बस कुछ लिखने का मन कर रहा है।
पढ़े लिखे लोग आजादी का भाषण दे रहे हैं,मैंने बचपन में पढ़ा था कि "आपकी आजादी वहां खत्म होती है जहाँ दूसरे की नाक शुरू होती है "
फिर से कहानी दोहराता हूँ शायद बड़े बच्चे इस कहानी को भूल गए होंगे।
एक बार एक आदमी अपने हाथ में अपने चारों ओर लाठी घुमा कर जोर से चिल्ला रहा था कि मैं आजाद हूँ,मैं आजाद हूँ अचानक एक सज्जन वहाँ पर आये और उन्होंने कहा बेटा आप आजाद हैं ये बिलकुल ठीक है पर आपकी आजादी वहां ख़त्म होती है जहाँ से मेरी नाक शुरू होती है।
बिल्कुल सही है आप आजाद है पर जहाँ तक दूसरों को तकलीफ नहीं होनी चाहिए। जो आजादी हमें गुलामी से मिली है वो तो देश के कुछ महापुरुषों की कुर्बानी से मिली है,इसे संभाल कर रखने का प्रत्येक नागरिक का कर्तब्य है,अपने हक़ के लिए भी लड़ना जरुरी है पर आपस में लड़कर नहीं,अंग्रेज यही तो चाहते थे कि आपस में फूट डालो और राज करो नौजवानों सावधान -सावधान। 

                             ॥ जय हिन्द जय भारत ॥ 

शनिवार, 13 फ़रवरी 2016

अभिमान भी एक दूषित अवगुण है |

(दीदी माँ ऋतम्भरा जी)

पूज्या दीदी माँ के अमृत बचनों के कुछ अंस सुने जो यहाँ लिख रहा हूँ ।
एक बार की बात है गाँव के कुँए  में एक बिल्ली  मर गयी थी, सारे गाँव वाले पंडित  के पास गए कि महाराज  कुँए  का पानी अपवित्र हो गया है बड़ी ही बदबू आ रही है क्या करें ।
पंडित जी ने कहा चंदा इकट्ठा करो और भागवत  कथा कराओ,और गंगाजल एवं  गुलावजल कुँए में डालो तव जल पवित्र व पीने  लायक हो जायेगा । तुरंत सभी गाँव के गणमान्य लोग इस काम में लग गए और बहुत ही अच्छे  ढंग से पंडित जी के अनुसार सब कुछ किया,पर कुंए से बदबू आना बंद नहीं हुआ तो सब गुस्से में पंडित जी को कहने लगे,गुरु जी कितना खर्च करवा दिया पर जल में बदबू आना बंद नही हो रहा है।
पंडित जी ने कहा अरे भाईयों मरी हुई बिल्ली को तो निकाल  देते,कहने लगे नही महाराज यह तो नहीं किया,बस ऐसे ही हमारे अंदर का अभिमान है जब तक बाहर नहीं निकाला कितनी भी शुद्धि करें वैसा ही रहेगा । 


। । हरी ॐ । ।  


शनिवार, 16 जनवरी 2016

विद्या अथवा ज्ञान (गुरु वाणी)

विद्या ऐसी चीज है ज्यों-ज्यों खर्चे,त्यों-त्यों बढ़े।
और बिन खर्चे घटे जाय।।

विद्या या ज्ञान एक ऐसी चीज है,जिसको जितना ज्यादा खर्च करेंगें उतनी ही ज्यादा बढ़ती जायगी,जिसके पास जितना ज्ञान है अगर उसे बितरित न किया जाय तो वह सिकुड़ कर कम होता जाएगा,अतः ज्ञान को बांटें और अपना ज्ञान कोष बढ़ाएं।     । । हरि ॐ जय गुरुदेव । । 

गुरुवार, 7 जनवरी 2016

चुनाव करना ।। हरी ॐ।।

किसी चीज को चुनना वास्तव में एक सरल काम नहीं है,आम तौर पर अगर कोई आप से कहता है कि आप के सामने ढेर सारी चीजो में से कोई एक चीज को चुनना है, तो सीधी सी बात है जो आपकी पसंद की होगी वही  आपके पास होगी लेकिन,अब उस वस्तु  से होने वाले लाभ या हानि के हकदार तो बस आप ही हैं।
श्री नारायण हरी ने महाभारत के धर्मयुद्ध में दुर्योधन से कहा था कि हे सुयोधन कृपया आप स्वयं ही चयन करें कि मैं या मेरी सेना में से आपको क्या चाहिए,एक चीज का चयन करना होगा, तो दुर्योधन ने सोचा कि अकेले श्री विष्णु का  मैँ क्या करूँगा और तुरंत कहा कि आप मुझे अपनी सेना दीजिये। 


(फोटो गूगल से साभार)

बस क्या था श्री हरि विष्णु तो यही चाहते थे और तथास्तु कह कर युद्ध की तैयारियां शुरू कर दी और अर्जुन के तो भगवान सारथी ही बन गए,धर्मयुद्ध ही तो था कि पांच भाइयों  ने सौ भाइयों को  मृत्यु का रास्ता दिखा दिया।   ।। हरी ॐ।। 

शुक्रवार, 13 नवंबर 2015

यह बख़्त भी चला जायेगा

यह बख़्त भी  चला जायेगा 

एक बार की बात है ,अकबर बादशाह ने बीरबल  से कहा कि कई बार ऐसी स्थति आती है कि मैं ख़ुशी के समय में बहुत खुश हो जाता हूँ ,और जब  दुःख  की बात  आती है  ही तो बहुत  दुखी  हो जाता  हूँ ,ऐसा  कुछ करो कि  मैं हर बख़्त  एक समान  ही महसूस  करुँ ,

यह सुनकर बीरबल ने  अकबर  बादशाह के दरबार में सुन्दर बड़े - बड़े  अक्षरों   में  राजा के ठीक सामने वाली दीवार में ,जहाँ  आते ही बादशाह की नजर पड़े -

यह बख़्त भी  चला जायेगा  

लिखवा दिया,अब राजा जब भी  दरबार में आते तो उन्हें यह पंक्तियाँ पढ़ कर हमेसा सामान्य ही महसूस होता था,उनको खुसी के समय में नतो ज्यादा ख़ुशी होती थी और दुःख के समय में न ज्यादा गम । 

 (फोटो गूगल से साभार )

शनिवार, 31 अक्टूबर 2015

स्वयं को जाने ॥ हरी ॐ ॥

जिसको अपनी बुद्धि नहीं,तो गुरु ज्ञान क्या करे ।
निज रूप को जाना नहीं, तो पुराण क्या करे ॥   

(फोटो ट्वीटर से साभार )

जब तक अपनी ही बुद्धि काम नहीं करती तो गुरु जी का ज्ञान भी क्या करेगा । एक बार की बात है किसी गुरु जी ने अपने दो शिष्यों को ज्ञान दिया कि किसी पराई औरत को छूना  पाप है,एक दिन वे दोनों नदी में स्नान हेतु जा रहे थे,तो अचानक एक औरत की आवाज सुनाई दी,बचाओ -बचाओ!!!!!!महिला डूबने ही वाली थी एक गुरुभाई ने कहा की ख़बरदार औरत को हाथ मत लगाना पाप हो जाएगा,परन्तु दूसरे ने एक नहीं सुनी और उस औरत को डूबने से बचाता हुआ गोद में उठाकर किनारे ले आया।
गुरुभाई ने कहा की अब तो गुरु जी से तेरी शिकायत करूँगा याद है गुरु जी ने क्या कहा था किसी भी औरत को छूना भी पाप है और तू तो उसे गोद में उठाकर लाया है,जब दोनों गुरु जी के पास गए,गुरु जी ने कहा बेटा किसी पराई स्त्री को बुरी नजर से भी देखना पाप है मगर उसने तो डूबने से मरती हुई स्त्री के प्राण बचाए हैं, अतः वह तो पुण्य का भागी है,तुमने मेरी दी हुई शिक्षा पर ठीक से ध्यान नहीं दिया।  ॥ हरी ॐ ॥ 

॥ जय गुरु देव ॥ 

  

गुरुवार, 15 अक्टूबर 2015

बड़ो का आशीर्वाद

दुआ और आशीर्वाद का फल 

बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद बिल्कुल एक बिजली की तरह होता है,चाहे वे कोई दुस्मन की तरफ ही क्यों न हो !ऐसी ही महाभारत की कथा है जिसमे धर्म,ज्ञान,सत्य तथा रण कौसल की शिक्षा मिलती है ! जब कुरुक्षेत्र के मैदान में पांडव और कौरवों  की सेनाएं आमने-सामने युद्ध के लिए तैयार थी यह तो सभी जानते है कि भगवान विष्णु ने अर्जुन को गीता उपदेश दिया था और तब उनको युद्ध के लिए तैयार किया था ! ठीक उसके बाद धर्मराज युधिश्ठर ने अपने अस्त्र शस्त्र रखकर हाथ जोड़कर कौरवों की सेना की तरफ बढे,यह देखकर सब हैरान थे कि अभी श्री हरि ने एक भाई को मनाया और अब ये क्या कर रहा है,परन्तु यह बात विष्णु जानते थे कि क्या होने वाला है !

(फोटो गूगल से प्राप्त )

धर्मराज जी सबसे पहले भीष्मपितामह के पास गए और दंडवत प्रणाम कर कहा कि पितामह मुझे आशीर्वाद दें कि मैं आप पर विजय प्राप्त कर सकूं,पितामह ने आशीर्वाद दिया और कहा तथास्तु विजयी भव !इसके बाद युधिस्ठर पुनः गुरु द्रोणाचार्य के पास गए और प्रणाम कर कहा गुरु जी मुझे आशीर्वाद दें कि मेरी सेना युद्ध में विजय प्राप्त कर सके गुरु जी ने कहा तथास्तु पुत्र,इसके पश्चात कृपाचार्य जी के पास गए और उसी तरह आशीर्वाद मांगा उन्होंने भी विजय प्राप्त होने का आशीर्वाद दिया!कहने का तात्पर्य है कि धर्मराज जी ने तो युद्ध से पहले ही अपनी जीत निश्चित कर ली थी,बस सिर्फ दुआ और आशीर्वाद से,इसके बिपरीत युवराज दुर्योधन ने अपनी सेना की ताकत के घमण्ड में किसी को प्रणाम भी नहीं किया और इस प्रकार से शंख ध्वनियाँ हुई और रणक्षेत्र में बीर बलवानो का युद्ध शुरू हुआ और अठारह अछोहिणी सेना मारी गई और धर्मराज यधिस्ठर की जीत हुई !