Bhagavad Gita is the life management book and self motivational book. many peoples change there life by reading this book, this is not a religious book anybody, any religion can read for better future. many peoples got success his business from this energetic book, I'm writing a shloka a day so if anybody don't have enough time to read so you can read a shloka a day, Thanks.
BHAGAVAD GITA IN HINDI
मंगलवार, 2 फ़रवरी 2021
BHAGAVAD GITA 2:1
I'm a husband, fathers of two kids, would like to help people anywhere and believe to spiritualty.
सोमवार, 1 फ़रवरी 2021
BHAGAVAD GITA 1:46
सञ्जय उवाच
एवमुक्त्वार्जुनः संख्ये रथोपस्थ उपविशत।
विसृज्य सशरं चापं शोकसंविग्नमानसः।।४६।।
सञ्जय उवाच :-संजय ने कहा; एवं इस प्रकार उक्त्वा :-कहकर;अर्जुनः-अर्जुन; संख्ये :-युद्धभूमि में;रथ:-रथ के; उपस्थे :-आसन पर उपविशत :-पुनःबैठ गया; विसृज्य :-एक और रखकर; स -शरम :-बाणो सहित; चापम:-धनुष को; शोक:-शोक से; संविग्न :-संतप्त,उद्विग्न; मानसः -मन भीतर।
संजय ने कहा -युद्धभूमि में इस प्रकार कह कर अर्जुन ने अपने धनुष तथा बाण एक ओर रख दिया है और शोक संतप्त चित्त से रथ के आसन पर बैठ गया।
अर्थात :-अपने शत्रु की स्थिति का अवलोकन करते समय अर्जुन रथ पर खड़ा हो गया था,किन्तु वह शोक से इतना संतप्त हो उठा कि अपना धनुष -बाण एक ओर रख कर रथ के आसन पर पुनः बैठ गया। ऐसा दयालु तथा कोमलहृदय व्यक्ति,जो भगवान् की सेवा में रत हो,आत्मज्ञान प्राप्त करने योग्य है।
इस प्रकार भगवद्गीता के प्रथम अध्याय "कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्यनिरीक्षण" का भक्तिवेदांत तात्पर्य पूर्ण हुआ।
क्रमशः !!!
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रविवार, 31 जनवरी 2021
BHAGAVAD GITA
🙏🙏 यदि मामप्रतीकारमशस्त्रं शस्त्रपाणयः।
धार्तराष्ट्रा रणे हन्युस्तन्मे क्षेमतरं भवेत।।४५।।🙏🙏
यदि :-यदि; माम :-मुझको; अप्रतिकारम :-प्रतिरोध न करने के कारण; अशस्त्रं:-बिना हथियार के; शस्त्रपाणय:-शस्त्रधारी;धार्तराष्ट्राः -धृतराष्ट्र के पुत्र; रणे:-युद्धभूमि में; हन्युः -मारे; तत :-वह; में :-मेरे लिए; क्षेम -तरम:-श्रेयस्कर; भवेत :-होगा।
यदि शस्त्रधारी धृतराष्ट्र पुत्र मुझ निहत्थे तथा रणभूमि में प्रतिरोध न करने वालों को मारें,तो यह मेरे लिए श्रेयस्कर होगा।
तात्पर्य :-क्षत्रियों के युद्ध -नियमों के अनुसार ऐसी प्रथा है कि निहत्थे तथा विमुख शत्रु पर आक्रमण न किया जाय। किन्तु अर्जुन ने निश्चय किया कि शत्रु भले ही इस विषम अवस्था में उस पर आक्रमण कर दे ,किन्तु वह युद्ध नहीं करेगा। उसने इस पर विचार नहीं किया कि दूसरा दल युद्ध के लिए कितना उद्दत है। इन सब लक्षणों कारण उसकी दयार्द्रता है जो भगवान् के महान भक्त होने कारण उत्पन्न हुई
क्रमशः !!!
I'm a husband, fathers of two kids, would like to help people anywhere and believe to spiritualty.
शनिवार, 30 जनवरी 2021
BHAGAVAD GITA 1:44
अहो बत महत्पापं कर्तुं व्यवसिता वयम।
यद्राज्यसुखलोभेन हन्तु स्वजनमुद्द्ताः।।४४।।
अहो:-ओह; बत :-कितना आश्चर्य है यह; महत:-महान; पापम:-पाप कर्म; कर्तुम:-करने के लिए; व्यवसिता:-निश्चय किया है; वयम:-हमने; यत :-क्यों; राज्य -सुख -लोभेन :-राज्य -सुख के लालच में आकर; हन्तुम:-मारने के लिए; स्व-जनम :-अपने सम्बन्धियों को;उद्द्ता:-तत्पर।
ओह ! कितने आश्चर्य की बात है की हम सब जघन्य पापकर्म करने के लिए उद्दत हो रहे हैं। राज्य सुख भोगने की इच्छा से प्रेरित हो कर हम अपने ही सम्बन्धियों को मारने पर तुले हुए हैं।
अर्थात :- स्वार्थ के वशीभूत होकर मनुष्य अपने सगे भाई,बाप, या माँ के वध जैसे पापकर्मों में प्रवृत हो सकता है। विश्व के इतिहास में ऐसे अनेक उदहारण मिलते हैं। किन्तु भगवान् का साधु भक्त होने के कारण अर्जुन सदाचार के प्रति जागरूक है। अतः वह ऐसे कार्यों से बचने का प्रयत्न करता है।
क्रमशः !!!
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शुक्रवार, 29 जनवरी 2021
BHAGVAD GITA 1:43
उत्सन्नकुलधर्माणां मनुष्याणां जनार्दनः।
नरके नियतं वासो भवतीत्यनुश्रुश्रुम।।४३।।
उत्सन्न:-विनष्ट; कुल-धर्मणाम:-पारिवारिक परम्परा वाले; मनुष्याणां:-मनुष्यों का; जनार्दन:-हे कृष्ण; नरके:-नरक में; नियतं :-सदैव; वास:-निवास; भवति:-होता है; इति :-इस प्रकार; अनुश्रुश्रुम:-गुरु परम्परा से मैंने सुना है।
हे प्रजापालक कृष्ण ! मैंने गुरु परम्परा से सुना है कि जो लोग कुल-धर्म का विनाश करते हैं, वे सदैव नरक में वास करते हैं।
अर्थात :-अर्जुन अपने तर्कों को अपने निजी अनुभव पर न आधारित करके आचार्यों से जो सुन रखा है उस पर आधारित है। वास्तविक ज्ञान प्राप्त करने की यही विधि है। जिस व्यक्ति ने पहले से ज्ञान प्राप्त कर रखा है उस व्यक्ति की सहायता के बिना कोई भी वास्तविक ज्ञान तक नहीं पहुंच सकता। वर्णाश्रम -धर्म की एक पद्धिति के अनुसार मृत्यु के पूर्व मनुष्य को पापकर्मों के लिए प्रायश्चित करना होता है। जो परमात्मा है उसे इस विधि का अवश्य उपयोग करना चाहिये। ऐसा किये बिना मनुष्य निश्चित रूप से नरक भेजा जायेगा जहां उसे अपने पापकर्मों के लिए कष्टमय जीवन बिताना होगा।
क्रमशः !!!
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गुरुवार, 28 जनवरी 2021
BHAGAVAD GITA 1:42
दोषैरेतैः कुलघ्नानां वर्णसङ्गरकारकैः।
उत्साद्यन्ते जातिधर्मा: कुलधर्माश्च शाश्वतः।।४२।।
दोषैः -ऐसे दोषों से;एतैः-इन सब; कुलघ्नानां :-परिवार नष्ट करने वालों का;वर्णसङ्कर:-अवांछित संतानों के;कारकैः- कारणों से;उत्साद्यन्ते:-नष्ट हो जाते हैं; जाति-धर्माः :-सामुदायिक योजनाएं; कुल-धर्मा:-पारिवारिक परम्पराएं; च :- भी;शाश्वतः -सनातन।
जो लोग कुल-परम्परा को विनष्ट करते हैं और इस तरह अवांछित संतानों को जन्म देते हैं उनके दुष्कर्मों से समस्त प्रकार की सामुदायिक योजनाएं तथा पारिवारिक कल्याण -कार्य विनष्ट हो जाते हैं।
अर्थात :-सनातन धर्म या वर्णाश्रम -धर्म द्वारा निर्धारित मानव समाज के चारों वर्णों के लिए सामुदायिक योजनाएं तथा पारिवारिक कल्याण -कार्य इसलिए नियोजित है कि मनुष्य चरम मोक्ष प्राप्त कर सके। अतः समाज के अनुत्तरदायी नायकों द्वारा सनातन धर्म परम्परा के बिखंडन से उस समाज में अव्यवस्था फैलती है,फलस्वरूप लोग जीवन के उद्देश्य विष्णु को भूल जाते हैं। ऐसे नायक अंधे कहलाते हैं और जो लोग इनका अनुगमन करते हैं वे निश्चय ही कुव्यवस्था की ओर अग्रसर होते हैं।
कर्मशः !!!
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बुधवार, 27 जनवरी 2021
BHAGAVAD GITA-1:41
सङ्करो नरकायैव कुलघ्नानां कुलस्य च।
पतन्ति पितरों ह्येषां लुप्तपिण्डोदकक्रियाः।।४१।।
सङ्कर:-ऐसे अवांछित बच्चे; नरकाय:-नारकीय जीवन के लिए; एव :-निस्चय ही; कुलघ्नानाम:-कुल का वध करने वालों के; कुलस्य:-कुल के; च:-भी; पतन्ति:-गिर जाते हैं; पितरः -पितृगण; हि :-निश्चय ही; एषाम:-इनके; लुप्त :-समाप्त; पिण्ड:-पिंड अर्पण की; उदक:-तथा जल की; क्रियाः -क्रिया,कृत्य।
अवांछित संतानों की वृद्धि से निश्चय ही परिवार के लिए तथा पारिवारिक परम्परा को विनष्ट करने वालों के लिए नारकीय जीवन उत्पन्न होता है। ऐसे पतित कुलों के पुरखे ( पितर लोग )गिर जाते हैं क्योंकिउन्हें जल तथा पिण्ड दान देने की क्रियाऐं समाप्त हो जाती हैं।
अर्थात :-सकाम कर्म के विधीविधानों के अनुसार कुल के पितरों को समय -समय पर जल तथा पिंड दान दिया जाना चाहिए। यह दान विष्णु पूजा द्वारा किया जाता है क्योंकि विष्णु को अर्पित भोजन के उच्छिस्ट भाग ( प्रसाद )के खाने से सारे पापकर्मों से उद्धार हो जाता है। कभी-कभी पितरगण विविध प्रकार के पापकर्मों से ग्रस्त हो सकते हैं और कभी -कभी उनमे से कुछ को स्थूल शरीर प्राप्त न हो सकने के कारण उन्हें प्रेतों के रूप में सूक्ष्म शरीर धारण करने के लिए बाध्य होना पड़ता है। अतः जब वंशजों द्वारा पितरों को बचा प्रसाद अर्पित किया जाता है तो उनका प्रेतयोनि या अन्य प्रकार के दुखमय जीवन से उद्धार होता है। पितरों को इस तरह की सहायता पहुँचाना कुल परम्परा है और जो लोग भक्ति का जीवन यापन नहीं करते उन्हें ये अनुष्ठान करने होते हैं। केवल भक्ति करने से मनुष्य सैकड़ों क्या हजारों पितरों को ऐसे संकटों से उबार सकता है।
देवर्षि भूताप्तनृणाम पितृणां
न किंकरो नायमृणी च राजन।
सर्वात्मना य: शरणं शरण्यं
गतो मुकंदं परिहत्य कर्तम।। (भागवत ११.५.४१ )
"जो पुरुष अन्य समस्त कर्तव्यों को त्याग कर मुक्ति के दाता मुकुंद के चरण कमलों की शरण ग्रहण करता है और इस पथ पर गंभीरता पूर्वक चलता है वह देवताओं,मुनियों,सामान्य जीवों,स्वजनों,मनुष्यों या पितरों के प्रति अपने कर्तव्य या ऋण से मुक्त हो जाता है। "श्री भगवान् की सेवा करने से ऐसे दायित्व अपने आप दूर हो जाते हैं।
क्रमशः !!!
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