Bhagavad Gita is the life management book and self motivational book. many peoples change there life by reading this book, this is not a religious book anybody, any religion can read for better future. many peoples got success his business from this energetic book, I'm writing a shloka a day so if anybody don't have enough time to read so you can read a shloka a day, Thanks.
BHAGAVAD GITA IN HINDI
सोमवार, 18 जनवरी 2021
BHAGVAD GITA
I'm a husband, fathers of two kids, would like to help people anywhere and believe to spiritualty.
रविवार, 17 जनवरी 2021
BHAGVAD GITA
तत्रापश्यत्स्थितानपार्थ: पितृनथ पितामहान।
आचार्यान्मातुलानभृतृन्पुत्रान्पौत्रान्सखींस्तथा।
श्र्वश्रुरान्सुहृदयेचैव सेनयोरुभयोरपि।।२६।।
तत्र- वहां अपश्यत -देखा;स्थितान -खड़े;पार्थ -पार्थ ने; पितृन -पितरों (चाचा ताऊ )को ; अथ-भी;पितमहान -पितामहों को; आचार्यान -शिक्षकों को; मातुलान -मामाओं को;भ्रातृन-भाइयों को; पुत्रान -पुत्रों को;सखीन -मित्रों को; तथा-और; श्र्वश्रुरान-श्र्वसुरों को;सुह्रद: -शुभचिंतकों को; च-भी; एव निश्चय ही; सनयोः -सेनाओं के; उभयोः -दोनों पक्षों की; अपि-सहित।
अर्जुन ने वहां पर दोनों पक्षों की सेनाओं के मध्य में अपने चाचा-ताऊओं,पितामहों, गुरुओं, मामाओं, भाइयों, पुत्रों, पौत्रों,मित्रों, ससुरों,और शुभचिंतकों को भी देखा।
अर्थात :-अर्जुन युद्ध भूमि में अपने सभी सम्बन्धियों को देख सका। वह अपने पिता के समकालीन भूरिश्रवा जैसे व्यक्तियों को, भीष्म तथा सोमदत्त जैसे पितामहों, द्रोणाचार्य तथा कृपाचार्य जैसे गुरुओं, शल्य तथा शकुनि जैसे मामाओं,दुर्योधन जैसे भाइयों ,लक्ष्मण जैसे पुत्रों,अश्वथामा जैसे मित्रों एवं कृतवर्मा जैसे शुभचिंतकों को देख सका। वह उन सेनाओं को भी देख सका,जिनमें उसके अनेक मित्र थे।
क्रमशः !!!
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शनिवार, 16 जनवरी 2021
BHAGVAD GITA
भीष्मद्रोणप्रमुखतः सर्वेषां च महीक्षिताम ।
उवाच पार्थ पश्यैतान्समवेतांकुरुनीति।।२५।।
भीष्म -भीष्म पितामह ; द्रोण -गुरु द्रोण; प्रमुखतः-के समक्ष; सर्वेषाम -सबों के; च -भी; महीक्षिताम -संसार भर के राजा; उवाच -कहा; पार्थ। हे पृथा के पुत्र; पश्य -देखो; एतान -इन सबों को; समवेतान-एकत्रित; कुरुन -कुरुवंश के सदस्यों को; इति -इस प्रकार।
भीष्म,द्रोण तथा विश्व भर के अन्य समस्त राजाओं के सामने भगवान् ने कहा कि हे पार्थ !यहाँ पर एकत्र सारे कुरुओं को देखो।
अर्थात-समस्त जीवों के प्र्मात्मास्वरूप भगवान् कृष्ण यह जानते थे कि अर्जुन के मन में क्या बीत रहा है। इस प्रसंग में हृषिकेश शब्द का प्रयोग सूचित करता है कि वे सब कुछ जानते थे। इसी प्रकार पार्थ शब्द अर्थात प्रथा कुन्तीपुत्र भी अर्जुन के लिए प्रयुक्त होने के कारण महत्वपूर्ण है। मित्र के रूप में वे अर्जुन को बता देना चाहते थे कि चूँकि अर्जुन उनके पिता वसुदेव की बहन पृथा का पुत्र था इसलिए उन्होंने अर्जुन का सारथी बनना स्वीकार किया था। किन्तु जब उन्होंने अर्जुन से "कुरुओं को देखो" कहा तो इससे उनका क्या अभिप्राय था? क्या अर्जुन वहीँ पर रूक कर युद्ध करना नहीं चाहता था ? कृष्ण को अपनी बुआ पृथा के पुत्र से कभी भी ऐसी आशा नहीं थी। इस प्रकार से कृष्ण ने अपने मित्र की मनःस्थिति की पूर्वसूचना परिहासवश दी है।
क्रमशः !!!
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शुक्रवार, 15 जनवरी 2021
BHAGVAD GITA
सञ्जय उवाच
एवमुक्तो हृषीकेशो गुडाकेशेन भारत।
सेनयोरुभयोर्मध्ये स्थापयित्वा रथोत्तमम।।२४।।
सञ्जय उवाच-संजय ने कहा; एवम-इस प्रकार; उक्तः-कहे गये; हृषिकेश:-भगवान् कृष्ण ने; गुडाकेशेन-अर्जुन द्वारा; भारत-हे भरत के वंशंज; सेनयो:-सेनाओं के; उभयो-दोनों; मध्ये :-मध्य में; स्थापयित्वा -खड़ा करके; रथ-उत्तमम:-उस उत्तम रथ को।
संजय ने कहा - भारतवंशी !अर्जुन द्वारा इस प्रकार सम्बोधित किये जाने पर भगवान् कृष्ण ने दोनों दलों के बीच में उस उत्तम रथ को लाकर खड़ा कर दिया।
अर्थात -इस श्लोक में अर्जुन को गुडाकेश कहा गया है। गुडा का अर्थ नींद से है और जो नींद को जीत लेता है वह गुडाकेश है। नींद का मतलब अज्ञान से है। अतः अर्जुन ने कृष्ण की मित्रता के कारण नींद तथा अज्ञान दोनों पर विजय प्राप्त की थी। कृष्ण के भक्त के रूप में वह कृष्ण को क्षण नहीं भुला पाया क्योंकि भक्त का स्वभाव ही ऐसा होता है। यहाँ तक कि चलते अथवा सोते समय भी कृष्ण के नाम,रूप,गुणों तथा लीलाओं के चिंतन से भक्त कभी मुक्त नहीं रह सकता। अतः कृष्ण का भक्त उनका निरंतर चिंतन करते हुए नींद था अज्ञान दोनों को जीत सकता है। इसी को कृष्णभावनामृत या समाधि कहते हैं। प्रत्येक जीव की इन्द्रियों तथा मन के निर्देशक अर्थात हृषिकेश के रूप में कृष्ण अर्जुन के मंतव्य को समझ गये कि वह क्यों सेनाओं के मध्य में रथ को खड़ा करवाना चाहता है। ,अतः उन्होंने वैसा ही किया और फिर वे इस प्रकार बोले।
क्रमश !!!
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गुरुवार, 14 जनवरी 2021
BHAGVAd GITA
योत्स्यमानानवेक्षेहं य एतेत्र समागताः।
धार्तराष्ट्रस्य दुर्बुद्धेर्युद्धे प्रियचिकीर्षवः।।२३।।
योत्स्यमानान -युद्ध करने वालों को; अवेक्षे - देखूं; अहम् - मैं; ये -जो; एते -वे;अत्र -यहाँ,समागताः- एकत्र; धार्तराष्टस्य -धृतराष्ट्र के पुत्र की;दुर्बुद्धे-दुर्बुद्धि; युद्धे:-युद्ध में, प्रिय-मंगल, भला; चिकीर्षवः -चाहने वाले।
मुझे उन लोगों को देखने दीजिये,जो यहाँ पर धृतराष्ट्र के दुर्बुद्धि पुत्र (दुर्योधन) को प्रसन्न करने की इच्छा से लड़ने के लिए आये हुए हैं।
अर्थात :-यह सर्वविदित था कि दुर्योधन अपने पिता धृतराष्ट्र की सांठ गाँठ से पापपूर्ण योजनाए बनाकर पांडवों के राज्य को हड़पना चाहता था। अतः जिन समस्त लोगों ने दुर्योधन का पक्ष ग्रहण किया था वे उसी के सामानधर्मा रहे होंगें। अर्जुन युद्ध प्रारम्भ होने के पूर्व यह तो जान लेना चाहता था कि कौन -कौन से लोग आये हुए हैं। किन्तु उन के समक्ष समझौता का प्रस्ताव रखने की उसकी कोई योजना नहीं थी। यह भी तथ्य था कि वह उनकी शक्ति का, जिसका उसे सामना करना था,अनुमान लगाने की दृष्टि से उन्हें देखना चाह रहा था,यद्द्पि उसे अपनी विजय का विश्वास था क्योंकि कृष्ण उसकी बगल में विराजमान थे।
क्रमशः-!!!!!
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बुधवार, 13 जनवरी 2021
BHAGVAD GITA
अर्जुन उवाच
सेनयोरुभयोर्मध्ये रथं स्थापय मेच्युत।
यावदेत्तातृक्षेहं योद्धुकामानवस्थितान।। २१।।
कैर्मया योद्धव्यमस्मिन्रणसमुद्द्मे।।२२।।
अर्जुनः उवाच-अर्जुन ने कहा; सेनयो -सेनाओं के; उभयो:-दोनों; मध्ये-बीच में; रथम-रथ को स्थापय -कृपया खड़ा करें; में -मेरे; अच्युत -हे अच्युत; यावत् - जब तक; एतान-इन सब;निरीक्षे- देख सकूँ; अहम्-मैं; योद्धु कामान-युद्ध की इच्छा रखने वालों को; अवस्थितान -युद्धभूमि में एकत्र; कैः -किन -किन से; मया -मेरे द्वारा; सह-एक साथ;योद्धव्यम-युद्ध किया जाना है; अस्मिन- इस; रण-संघर्ष के; समुद्द्मे -उद्द्म या प्रयास में।
अर्जुन ने कहा- अच्युत ! कृपा करके मेरा रथ दोनों सेनाओं के बीच ले चलें जिससे मैं यहाँ उपस्थित युद्ध की अभिलाषा रखने वालों को और शस्त्रों की इस महान परीक्षा में, जिनसे मुझे संघर्ष करना है, उन्हें देख सकूँ।
अर्थात -यद्यपि श्रीकृष्ण साक्षात श्री भगवान् हैं, किन्तु वे अहैतुकी कृपावश अपने मित्र की सेवा में लगे हुए थे। वे अपने भक्तों पर स्नेह दिखाने में कभी नहीं चूकते इसलिए अर्जुन ने उन्हें अच्युत कहा है। सारथी रूप में उन्हें अर्जुन आज्ञा का पालन करना था और उन्होंने इसमें कोई संकोच नहीं किया, अतः उन्हें अच्युत कह कर सम्भोदित किया गया है। यद्द्पि उन्होंने अपने भक्त का सारथी पद स्वीकार किया था,किन्तु उनकी परम स्थिति अक्षुण बनी रही प्रत्येक परिस्थिति में वे इन्द्रयों के स्वामी श्री भगवान हृषिकेश हैं। भगवान् तथा उनके सेवक का सम्बन्ध अत्यंत मधुर एवं दिव्य होता है। सेवक स्वामी की सेवा करने के लिए सदैव उद्द्त रहता है और भगवान् भी भक्त की कुछ न कुछ सेवा करने की कोशिस में लगे रहते हैं। वे इसमें विशेष आनंद का अनुभव करते हैं कि वे स्वयं आज्ञादाता बने अपितु उनके शुद्ध भक्त उन्हें आज्ञा दें। चूँकि वे स्वामी हैं,अतः सभी लोग उनके आज्ञापालक हैं और उनके ऊपर उनको आज्ञा देने वाला कोई नहीं है। किन्तु जब वे देखते हैं कि उनका शुद्ध भक्त आज्ञा दे रहा है उन्हें दिव्य आनंद मिलता है यद्द्पि वे समस्त परिस्थितियों में अच्युत रहने वाले हैं।
भगवान् का शुद्ध भक्त होने के कारण अर्जुन को बन्धु -बान्धवों से युद्ध करने की तनिक भी इच्छा न थी,किन्तु दुर्योधन के द्वारा शांतिपूर्ण समझौता न करके हठधर्मिता पर उतारू होने के कारण उसे युद्धभूमि में आना पड़ा। अतः वह यह जानने के लिए अत्यंत उत्सुक था की युद्धभूमि में कौन -कौन से अग्रणी व्यक्ति उपस्थित हैं। यद्द्पि युद्धभूमि में शांति-प्रयासों का कोईं प्रश्न नहीं उठता तो भी वह उन्हें फिर से देखना चाह रहा था कि वे इस अवांछित युद्ध पर किस हद तक तुले हुए हैं।
क्रमशः !!!
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मंगलवार, 12 जनवरी 2021
BHAGVAD GITA
अथ व्यवस्थितान्दृष्टा धार्तराष्ट्रान्कपिध्वजः।
प्रविर्ते शस्त्रसम्पाते धनुर्द्धधम्म पाण्डवः।
हृषीकेशं तदा वाक्यमिदमाह महीपते।। २०।।
अथ :-तत्पश्चात; व्यवस्थितांन -स्थित; दिर्ष्टा-देखकर; धार्तराष्ट्रान -धृतराष्ट्र के पुत्रों को; कपि ध्वजः-जिसकी पताका पर हनुमान अंकित हैं; प्रविर्ते -कटिबद्ध; शस्त्र सम्पाते -बाण चलाने के लिए; धनुः-धनुष; उद्यम्य-ग्रहण करके,उठाकर; पाण्डवः -पाण्डुपुत्र अर्जुन ने; हृषीकेशं भगवान् कृष्ण से; तदा -उस समय; वाक्यम-वचन; इदम -ये ; आह -कहे; महीपते -हे राजा।
उस समय हनुमान से अंकित ध्वजा लगे रथ पर आसीन पाण्डुपुत्र अर्जुन अपना धनुष उठाकर तीर चलाने के लिए उद्यत हुआ। हे राजन !धृतरास्ट्र के पुत्रों को व्यूह में खड़ा देखकर अर्जुन ने श्रीकृष्ण ये वचन कहे।
अर्थात :-युद्ध प्रारम्भ होने ही वाला था। उपर्युक्त कथन से ज्ञांत होता है कि पांडवों की सेना की अप्रत्याशित व्यवस्था से धृतरास्ट्र के पुत्र बहुत कुछ निरुत्साहित थे क्योंकि युद्ध भूमि में पांडवो का निर्देशन भगवान् कृष्ण के आदेशानुसार हो रहा था। अर्जुन की ध्वजा पर हनुमान का चिन्ह भी विजय का सूचक है क्योंकि हनुमान ने राम रावण युद्ध में राम की सहायता की थी जिससे राम विजयी हुए थे। इस समय अर्जुन की सहायता के लिए उनके रथ पर राम तथा हनुमान दोनों उपस्थित थे। भगवान् कृष्ण साक्षात राम है और जहाँ भी राम रहते हैं वहां उनका नित्य सेवक होता है तथा उनकी नित्यसंगनी,वैभव की देवी सीता उपस्थित रहती हैं।
अतः अर्जुन के लिए किसी भी शत्रु से भय का कोई कारण नहीं था। इससे भी अधिक इन्द्रियों के स्वामी भगवान् कृष्ण निर्देश देने के लिए साक्षात उपस्थित थे। इस प्रकार अर्जुन को युद्ध करने के मामले में सारा सत्यपरामर्श प्राप्त था। ऐसी स्थितियों में,जिनकी व्यवस्था भगवान् ने अपने शाश्वत भक्त के लिए की थी, निश्चित ही विजय के लक्षण स्पष्ट थे।
क्रमशः !!!!
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