शनिवार, 2 जनवरी 2021

BHAGVAD GITA

 अध्याय १ श्लोक ७&८ 

अस्माकं तु विशिष्टा ये तान्निबोध द्विजोत्तम। 

नायका मम सैन्यस्य संज्ञार्थ तांब्रवीमि ते।।७।।

अस्माकं:-हमारे; तु:-लेकिन; विशिष्टा:-विशेष शक्तिशाली; ये:-जो;

तान:-उनको; निबोध:-जरा जान लीजिये; द्विजोत्तम:-हे ब्राह्मणश्रेष्ठ;

नायकाः-सेनापति; मम:-मेरी; सैन्यस्य:-सेना के; संज्ञार्थ:-सूचना के लिए 

तान:-उन्हें; ब्रवीमि:-बता रहा हूँ; ते:-आपको। 

अर्थात :-किन्तु हे ब्राह्मणश्रेठ !आपकी सूचना  लिए मैं अपनी सेना के उन नायकों के विषय में बताना चाहूंगा,जो मेरी सेना को संचालित करने में विशेष रूप से निपुण हैं। 

भवान्भीष्मश्च कर्णश्च कृपश्च समितिंजयः। 

अश्वत्त्थामा विकर्णश्च सोमदत्तिस्तथैव च।।८।।

भवान:-आप; भीष्मः-भीष्मपितामह;च:-भी; कर्ण:-कर्ण; च:-और;

कृप:-कृपाचार्य; समितिञ्जयः -सदा संग्रामविजयी; अश्वत्त्थामा:-अश्वत्त्थामा; विकर्ण: -विकर्ण; च:-तथा; सोमदतीः-सोमदत्त का पुत्र; 

तथा:-भी; एव:-निश्चय ही; च:- भी। 

अर्थात :- मेरी सेना में स्वयं आप भीष्म, कर्ण, कृपाचार्य, अश्वत्थामा, विकर्ण तथा सोमदत्त का पुत्र भूरिश्रवा आदि हैं,जो युद्ध में सदैव विजयी रहे हैं। 

दुर्योधन उन अद्वित्तीय युद्धवीरों का उल्लेख करता है   जो सदैव विजयी होते रहे है। विकर्ण दुर्योधन का भाई है, अश्वत्थामा द्रोणाचार्य का पुत्र है। कर्ण अर्जुन का आधा भाई है,क्योंकि वह कुंती के गर्भ से राजा पाण्डु से विवाहित होने से पूर्व उत्पन्न हुआ है। कृपाचार्य  की जुड़वां बहन के साथ द्रोणाचार्य जी ने शादी की थी। 

क्रमशः !!!!!!!!

शुक्रवार, 1 जनवरी 2021

BHAGVAD GITA

 अध्याय १ श्लोक ६ 

युधामनुश्च विक्रांत उत्तमौजाश्च वीर्यवान। 

सौभद्रो द्रौपदेयाश्च सर्व एव महारथाः।।६।।

युधामन्युः -युधामन्यु; च:-तथा; विक्रांत:-पराक्रमी; उत्तमौजा:-उत्तमौजा;

च:-तथा;वीर्यवान:-अत्यंत शक्तिशाली; सौभद्र:-सुभद्रा का पुत्र; 

द्रोपदेयाः-द्रोपदी के पुत्र; च:-तथा; सर्वे:-सभी; एव-निस्चय ही; 

महारथाः -महारथी। 

अर्थात:-इस प्रकार से दुर्योधन,द्रोणाचार्य जी से कह रहे थे कि पांडवो की सेना में पराक्रमी युधामन्यु, अत्यंत शक्तिशाली उत्तमौजा,सुभद्रा का पुत्र तथा द्रोपदी के पुत्र -ये सभी महारथी हैं। 

क्रमशः- !!!!!

गुरुवार, 31 दिसंबर 2020

BHAGVAD GITA

 अध्याय १ श्लोक ५ 

धृष्ट्केतुश्चेकितानः काशिराजश्च वीर्यवान। 

पुरुजित्कुन्तिभोजश्च शैब्यश्च नरपुंगवः।।५।।

धृष्टकेतुः -धृष्टकेतु; चेकितानः -चेकितान; काशिराजः -काशिराज;

च:-भी; वीर्यवान:-अत्यंत शक्तिशाली; पुरुजित:-पुरुजित; कुन्तिभोजः - कुन्तिभोज; च:-तथा; शैब्य:-शैब्य; च :-तथा;नरपुंगवः- मानव समाज में वीर।  

अर्थात :- इनके साथ ही धृष्टकेतु, चेकितान, काशिराज, पुरुजित, कुन्तिभोज,तथा शैब्य जैसे महान शक्तिशाली योद्धा भी हैं। 

क्रमशः !!!!!!!!

बुधवार, 30 दिसंबर 2020

BHAGVAD GITA

 अध्याय १ श्लोक ४ 

अत्र श्रुराः महेष्वासा भीमार्जुनसमा युधि। 
युयुधानो विराटश्च द्रुपदश्च 

महारथः।।४।।

अत्र :-यहाँ;श्रुराः :-वीर;महेष्वासा:-महान धनुर्धर;भीमार्जुन:-भीम तथा अर्जुन;समाः :-के समान युधि :-युद्ध में;युयुधानः :-युयुधान  ;विराटः -विराट;च :-भी;द्रुपद :- द्रुपद ; च :-भी;महारथः :-महान योद्धा।

 इस सेना में भीम तथा अर्जुन के समान युद्ध करने वाले अनेक वीर धनुर्धर हैं -महारथी युयुधान,विराट तथा द्रुपद। 
अर्थात :-जबकि युद्धकला में द्रोणाचार्य की महान शक्ति के समक्ष धृष्टधुम्न महत्पूर्ण वाधक नहीं था,किन्तु ऐसे अनेक योद्धा थे जिनसे उसको भय था दुर्योधन इन्हें विजयपथ में बाधक बताता है क्योंकि इनमे से प्रत्येक योद्धा भीम तथा अर्जुन के समान दुर्जेय था। उसे भीम तथा अर्जुन के बल का ज्ञान था, इसीलिए वह अन्यों की तुलना इन दोनों से करता है। 
क्रमशः !!!!!!!!!!

मंगलवार, 29 दिसंबर 2020

BHAGVAD GITA

अध्याय १ श्लोक ३ 

पश्यैतां पाण्डुपुत्रानामाचार्य महतीं चमूम।
व्यूढां द्रुपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता।।३।।

पश्य :-देखिए;एताम :-इस;पाण्डु पुत्राणाम :-पाण्डु के पुत्रों की;आचार्य ;-हे आचार्य;महतीम:-विशाल;चमूम:-सेना को;व्यूढां:-व्यवस्थित;द्रुपदपुत्रेण :-द्रुपद  के पुत्र द्वारा;तव :-तुम्हारे; शिष्येण:-शिष्य द्वारा;धीमता :-अत्यंत बुद्धिमान। 

हे आचार्य !पाण्डुपुत्रों की विशाल सेना को देखें,जिसे आपके बुद्धिमान शिष्य द्रुपद  के पुत्र ने इतने कौशल से व्यवस्थित किया है। 

अर्थात:-परम राजनीतिज्ञ दुर्योधन सेनापति द्रोणाचार्य के दोषों को इंगित करना चाहता था। राजा द्रुपद व् द्रोणाचार्य जी का आपस में पुराना राजनितिक झगड़ा था इसलिए द्रुपद  ने एक महान यज्ञ संपन्न किया जिससे उन्हें एक पुत्र प्राप्त होने का वरदान मिला,जो द्रोणाचार्य का वध कर सके। द्रोणाचार्य इस बात को भलीभांति जानते थे किन्तु जब द्रुपद का पुत्र धृष्टधुम्न युद्ध शिक्षा के लिए उनको सौंपा गया तो द्रोणाचार्य जी को उसे अपने सारे सैनिक रहस्य प्रदान करने में कोई झिझक नहीं हुई। 

इस प्रकार से युद्धभूमि में वह पांडवों के साथ था और द्रोणाचार्य से जो कला सीखी थी उसी के आधार पर उसने व्यूह रचना की,दुर्योधन ने इस कमजोरी की ओर  द्रोणाचार्य जी को इंगित किया कि कहीं वह अपने प्रिय शिष्य पांडवो के प्रति उदारता न दिखाएँ। विशेष रूप से अर्जुन उनका अत्यंत प्रिय एवं तेजस्वी शिष्य था। दुर्योधन कहना चाहता था कि इससे उनकी हार हो सकती है। 

क्रमशः !!!!!!!                                                                                                                                                                                                                                                                          

सोमवार, 28 दिसंबर 2020

BHAGVAD GITA

अध्याय १ श्लोक २ 

सञ्जय उवाच 

दृष्टा तु पाण्डवानीकं व्यूढं दुर्योधनस्तदा। 
आचार्यमुपसङ्गम्य राजा वचनमबृवीत ।।२।।

सञ्जयः उवाच:-संजय ने कहा;दृष्टा :-देखकर;तु :-लेकिन;पाण्डवानीकं:-पांडवों की सेना;व्यूढं:-व्यूहरचना;दुर्योधनः :-राजा दुर्योधन ने;तदा:-उस समय;आचार्यम:-शिक्षक,गुरु के;उपसङ्गम्य:-पास जाकर;राजा:-राजा; वचनम:-शब्द;अब्रवीत:-कहा 

संजय ने कहा -हे राजन !पाण्डुपुत्रों द्वारा सेना की व्यूहरचना देखकर राजा दुर्योधन अपने गुरु के पास गया और उसने ये शब्द कहे। 
अर्थात :-दुर्योधन पांडवों की व्यूहरचना देखकर घबरा गया और वह तुरंत अपने गुरु के पास गया,दुर्योधन एक अच्छा राजनीतिज्ञ बन सकता था पर कूटनीतवश ही पांडवो से समझौता नहीं कर सकता था।
क्रमशः!!!!!!!!!!

 

रविवार, 27 दिसंबर 2020

BHAGVAD GITA

                                  भगवद गीता 

    अध्याय एक 

कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में  सैन्यनिरीक्षण 

धृतराष्ट्र उवाच 

धर्मक्षेत्रे कुरुक्षत्रे समवेता युयुत्सवः। 
मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय।।१।।
धृतरास्ट्र उवाच -राजा धृतरास्ट्र ने कहा,धर्मक्षत्रे -धर्मभूमि में,कुरुक्षत्रे -कुरुक्षेत्र में ,समवेता -एकत्र ,
युयुत्सवः-युद्ध करने की इच्छा से,मामकाः-मेरे पुत्रों,पाण्डवाः -पाण्डुपुत्रों ने,च -तथा,एव-निस्चय ही,किम-क्या,
कुर्वत-किया, सञ्जय -हे संजय।  
धृतरास्ट्र  ने कहा -हे संजय !धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में युद्ध की इच्छा से एकत्र हुए मेरे तथा पाण्डु के पुत्रों ने क्या किया ?
अर्थात  :-भगवदगीता एक बहुपठित आस्तिक विज्ञान है जो गीता महात्म्य में सार रूप में दिया हुआ है। इसमें यह उल्लेख है कि मनुष्य को चाहिए कि वह श्रीकृष्ण के भक्त की सहायता से संवीक्षाण करते हुए भगवदगीता का अध्ययन करे और स्वार्थप्रेरित व्याख्याओं के बिना उसे समझने का प्रयास करे। 
अर्जुन ने जिस प्रकार से साक्षात भगवान् कृष्ण से गीता सुनी और उसका उपदेश ग्रहण किया,इस प्रकार की सपष्ट अनुभूति का उदाहरण भगवद्गीता में ही है। यदि उसी गुरु परम्परा से निजी स्वार्थ से प्रेरित हुए बिना,किसी को भगवद्गीता समझने का सौभाग्य प्राप्त हो। 
इस  प्रकार से धृतरास्ट्र अत्यंत संदिग्ध था कि मेरे पुत्र युद्ध में विजयी होंगे या नहीं इसी लिए संजय से पूछ रहे है। 
(अगला श्लोक अगली पोस्ट में धन्यवाद )