बुधवार, 2 जून 2021

BHAGAVAD GITA 3:31

🙏🙏

ये में मतमिदं नित्यमनुतिष्ठन्ति मानवाः। 

श्रद्धावन्तोनसूयन्तो मुच्यन्ते तेपि कर्मभिः।।३१।। 

ये -जो; में -मेरे; मतम -आदेशों को; इदम -इन; नित्यम -नित्य कार्य के रूप में; अनुतिष्ठन्ति -नियमित रूप से पालन करते हैं; मानवाः-मानव प्राणी; श्रद्धा-वन्तः -श्रद्धा तथा भक्ति समेत; अनसूयन्तः -बिना ईर्ष्या के; मुच्यन्ते -मुक्त हो जाते हैं; ते -वे; अपि -भी; कर्मभिः सकामकर्मों के नियमरूपी बन्धन से। 

जो व्यक्ति मेरे आदर्शों के अनुसार अपना कर्तव्य करते रहते हैं और ईर्ष्या रहित होकर इस उपदेश का श्रद्धापूर्वक पालन करते हैं,  वे सकाम कर्मों के बन्धन से मुक्त हो जाते हैं। 

तत्पर्य :-श्री भगवान् कृष्ण का उपदेश समस्त वैदिक ज्ञान का सार है,अतः किसी अपवाद के बिना यह शाश्वत सत्य है। जिस प्रकार वेद शाश्वत हैं उसी प्रकार कृष्णभावनामृत का यह सत्य भी शाश्वत  है। मनुष्य को  चाहिए कि भगवान् से ईर्ष्या किये बिना इस आदेश में दृढ़ विश्वास रखे। ऐसे अनेक दार्शनिक हैं,जो भगवदगीता पर टीका रचते हैं,किन्तु कृष्ण में कोई श्रद्धा नहीं रखते। वे कभी सकाम कर्मों के बन्धन से मुक्त नहीं हो सकते। किन्तु एक सामान्य पुरुष भगवान्  के इन आदेशों में दृढ़विश्वास करके कर्म -नियम के बन्धन से मुक्त हो जाता है, भले ही वह इन आदेशों का ठीक से पालन न कर पाए। कृष्णभावनामृत के प्रारम्भ में भले ही कृष्ण के आदेशों का पूर्णतया पालन न हो पाए,किन्तु चूँकि मनुष्य इस नियम से रुष्ट नहीं होता और पराजय तथा निराशा का विचार किये बिना निष्ठापूर्वक कार्य करता है,अतः वह विशुद्ध कृष्णभावनामृत को प्राप्त होता है। 

क्रमशः !!!🙏🙏  

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें