मंगलवार, 16 अगस्त 2016

प्रशंसा और आलोचना


प्रशंसा पुण्य शिथिल करती है, आलोचना विकास के द्वार खोलती है.अपनी प्रशंसा सुनने पर कोई भी खुश हो जाता है,और सोचता है की मैं उत्तम मनुष्य हूं तो समझो आपके पुण्य खत्म हो रहे है इसके विपरीत अगर कोई आपकी आलोचना करता है तो समझो आपके विकास की संभावनाएं बढ़ रही है,आप स्वयं को बढ़िया बनाने की कोशिश में लग जाते हो ।

 जय गुरुदेव

शनिवार, 21 मई 2016

बुद्धि एवम विवेक

पांडवो के वनवास के समय की बात है,दूर जंगल में चलते-चलते  जब पांचो भाई थक गए तो धर्मराज जी ने सहदेव को पानी के लिए एक कुंवे के पास भेजा पर वो वापस लौट के नहीं आया तो उन्होंने तुरंत नकुल को भेजा वो लौट के नहीं आया इस प्रकार से भीम,अर्जुन सभी गए और वापस नहीं आये तो बड़े भाई धर्मराज चिंतित हो कर खुद गए।
उन्होंने देखा कि उनके सभी भाई बेहोश है और रोते हुए वे पानी पीने को बढे ही थे कि यक्ष राज ने उनको रोक और बोले हे युधिष्ठिर पहले मेरे सवालो का जबाव दो फिर पानी पी सकते हो,तुम्हारे भाईयों ने मेरे प्रश्नों का जबाब नहीं दिया तो मैंने ही उनकी ये गति की है ।
धर्मराज जी ने एक-एक करके सभी प्रश्नों का जबाब दिया तो यक्ष राज ने खुश होकर कहा कहो धर्मराज मैं बहुत खुश हूँ चाहो तो मैं तुम्हारा एक भाई जीवित कर देता हूँ बताओ किसको जिन्दा चाहते हो,तो धर्मराज जी ने सोच कर कहा हे यक्ष राज आप नकुल को जिन्दा कर दें ।
इस बात पर यक्ष ने कहा आपने महाबली भीम और धर्नुधर अर्जुन को क्यों नहीं माँगा तो धर्मराज जी ने कहा नहीं महाराज मेरी दो माताएं हैं कुंती और माद्री, मैं कुंती का पुत्र जीवित हूँ और नकुल माता  माद्री का पुत्र है
इस विवेकपूर्ण जबाब को सुनकर यक्ष राज बहुत खुश हुए और उन्होंने उनके सभी भाईयों को जीवित कर दिया।

रविवार, 27 मार्च 2016

दिखावे का फैशन

एक गाँव में एक बूढी माता जी रहती थी बड़ी मुश्किल  से अपना गुजारा  करती थी, अचानक उनके मन में आया कि वो भी लोगो की तरह सोने का कड़ा बनवाकर हाथ में पहनेंगी,किसी तरह से सोने का कड़ा बनवा लिया और हाथ में पहन कर घूमने लगी। 
परन्तु पुरे गाँव में किसी ने भी यह नहीं पूछा कि माता जी आपका कड़ा कितना सुन्दर है और मँहगा है तो माता जी को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने तुरंत अपनी झोंपड़ी में आग लगा दी, आग और धुंआ देखकर सारे गाँववाले इकट्ठे हो गए और आग बुझाने लगे आग शांत होने के बाद अचानक एक महिला उनके पास आयीं और बोली अरे वाह माताजी आपके हाथ में कितना सुन्दर सोने का कड़ा है और कितना चमकता है। 
माताजी  ने जबाव में कहा पहले कह देती तो झोंपड़ी में आग ना लगाती।  
जय हो बापू
हरिओम 

(फोटो गूगल से साभार )

रविवार, 6 मार्च 2016

वात्सल्य वाणी


परम पूज्या दीदी माँ साध्वी ऋतम्भरा जी के मुख से वात्सल्य वाणी सुनने का बार -बार  मन करता है। 
आप भी सुने। 



(साभार एडमिन वात्सल्य वाणी पेज)

रविवार, 28 फ़रवरी 2016

आजादी का अर्थ

आज अपने देश में आजादी के नारे सुनने पर बस कुछ लिखने का मन कर रहा है।
पढ़े लिखे लोग आजादी का भाषण दे रहे हैं,मैंने बचपन में पढ़ा था कि "आपकी आजादी वहां खत्म होती है जहाँ दूसरे की नाक शुरू होती है "
फिर से कहानी दोहराता हूँ शायद बड़े बच्चे इस कहानी को भूल गए होंगे।
एक बार एक आदमी अपने हाथ में अपने चारों ओर लाठी घुमा कर जोर से चिल्ला रहा था कि मैं आजाद हूँ,मैं आजाद हूँ अचानक एक सज्जन वहाँ पर आये और उन्होंने कहा बेटा आप आजाद हैं ये बिलकुल ठीक है पर आपकी आजादी वहां ख़त्म होती है जहाँ से मेरी नाक शुरू होती है।
बिल्कुल सही है आप आजाद है पर जहाँ तक दूसरों को तकलीफ नहीं होनी चाहिए। जो आजादी हमें गुलामी से मिली है वो तो देश के कुछ महापुरुषों की कुर्बानी से मिली है,इसे संभाल कर रखने का प्रत्येक नागरिक का कर्तब्य है,अपने हक़ के लिए भी लड़ना जरुरी है पर आपस में लड़कर नहीं,अंग्रेज यही तो चाहते थे कि आपस में फूट डालो और राज करो नौजवानों सावधान -सावधान। 

                             ॥ जय हिन्द जय भारत ॥ 

शनिवार, 13 फ़रवरी 2016

अभिमान भी एक दूषित अवगुण है |

(दीदी माँ ऋतम्भरा जी)

पूज्या दीदी माँ के अमृत बचनों के कुछ अंस सुने जो यहाँ लिख रहा हूँ ।
एक बार की बात है गाँव के कुँए  में एक बिल्ली  मर गयी थी, सारे गाँव वाले पंडित  के पास गए कि महाराज  कुँए  का पानी अपवित्र हो गया है बड़ी ही बदबू आ रही है क्या करें ।
पंडित जी ने कहा चंदा इकट्ठा करो और भागवत  कथा कराओ,और गंगाजल एवं  गुलावजल कुँए में डालो तव जल पवित्र व पीने  लायक हो जायेगा । तुरंत सभी गाँव के गणमान्य लोग इस काम में लग गए और बहुत ही अच्छे  ढंग से पंडित जी के अनुसार सब कुछ किया,पर कुंए से बदबू आना बंद नहीं हुआ तो सब गुस्से में पंडित जी को कहने लगे,गुरु जी कितना खर्च करवा दिया पर जल में बदबू आना बंद नही हो रहा है।
पंडित जी ने कहा अरे भाईयों मरी हुई बिल्ली को तो निकाल  देते,कहने लगे नही महाराज यह तो नहीं किया,बस ऐसे ही हमारे अंदर का अभिमान है जब तक बाहर नहीं निकाला कितनी भी शुद्धि करें वैसा ही रहेगा । 


। । हरी ॐ । ।