Bhagavad Gita is the life management book and self motivational book. many peoples change there life by reading this book, this is not a religious book anybody, any religion can read for better future. many peoples got success his business from this energetic book, I'm writing a shloka a day so if anybody don't have enough time to read so you can read a shloka a day, Thanks.
BHAGAVAD GITA IN HINDI
शनिवार, 16 जनवरी 2016
विद्या अथवा ज्ञान (गुरु वाणी)
विद्या ऐसी चीज है ज्यों-ज्यों खर्चे,त्यों-त्यों बढ़े।
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गुरुवार, 7 जनवरी 2016
चुनाव करना ।। हरी ॐ।।
किसी चीज को चुनना वास्तव में एक सरल काम नहीं है,आम तौर पर अगर कोई आप से कहता है कि आप के सामने ढेर सारी चीजो में से कोई एक चीज को चुनना है, तो सीधी सी बात है जो आपकी पसंद की होगी वही आपके पास होगी लेकिन,अब उस वस्तु से होने वाले लाभ या हानि के हकदार तो बस आप ही हैं।
श्री नारायण हरी ने महाभारत के धर्मयुद्ध में दुर्योधन से कहा था कि हे सुयोधन कृपया आप स्वयं ही चयन करें कि मैं या मेरी सेना में से आपको क्या चाहिए,एक चीज का चयन करना होगा, तो दुर्योधन ने सोचा कि अकेले श्री विष्णु का मैँ क्या करूँगा और तुरंत कहा कि आप मुझे अपनी सेना दीजिये।
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शुक्रवार, 13 नवंबर 2015
यह बख़्त भी चला जायेगा
यह बख़्त भी चला जायेगा
एक बार की बात है ,अकबर बादशाह ने बीरबल से कहा कि कई बार ऐसी स्थति आती है कि मैं ख़ुशी के समय में बहुत खुश हो जाता हूँ ,और जब दुःख की बात आती है ही तो बहुत दुखी हो जाता हूँ ,ऐसा कुछ करो कि मैं हर बख़्त एक समान ही महसूस करुँ ,
यह सुनकर बीरबल ने अकबर बादशाह के दरबार में सुन्दर बड़े - बड़े अक्षरों में राजा के ठीक सामने वाली दीवार में ,जहाँ आते ही बादशाह की नजर पड़े -
यह बख़्त भी चला जायेगा
लिखवा दिया,अब राजा जब भी दरबार में आते तो उन्हें यह पंक्तियाँ पढ़ कर हमेसा सामान्य ही महसूस होता था,उनको खुसी के समय में नतो ज्यादा ख़ुशी होती थी और दुःख के समय में न ज्यादा गम ।
(फोटो गूगल से साभार )
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शनिवार, 31 अक्टूबर 2015
स्वयं को जाने ॥ हरी ॐ ॥
जिसको अपनी बुद्धि नहीं,तो गुरु ज्ञान क्या करे ।
निज रूप को जाना नहीं, तो पुराण क्या करे ॥
(फोटो ट्वीटर से साभार )
जब तक अपनी ही बुद्धि काम नहीं करती तो गुरु जी का ज्ञान भी क्या करेगा । एक बार की बात है किसी गुरु जी ने अपने दो शिष्यों को ज्ञान दिया कि किसी पराई औरत को छूना पाप है,एक दिन वे दोनों नदी में स्नान हेतु जा रहे थे,तो अचानक एक औरत की आवाज सुनाई दी,बचाओ -बचाओ!!!!!!महिला डूबने ही वाली थी एक गुरुभाई ने कहा की ख़बरदार औरत को हाथ मत लगाना पाप हो जाएगा,परन्तु दूसरे ने एक नहीं सुनी और उस औरत को डूबने से बचाता हुआ गोद में उठाकर किनारे ले आया।
गुरुभाई ने कहा की अब तो गुरु जी से तेरी शिकायत करूँगा याद है गुरु जी ने क्या कहा था किसी भी औरत को छूना भी पाप है और तू तो उसे गोद में उठाकर लाया है,जब दोनों गुरु जी के पास गए,गुरु जी ने कहा बेटा किसी पराई स्त्री को बुरी नजर से भी देखना पाप है मगर उसने तो डूबने से मरती हुई स्त्री के प्राण बचाए हैं, अतः वह तो पुण्य का भागी है,तुमने मेरी दी हुई शिक्षा पर ठीक से ध्यान नहीं दिया। ॥ हरी ॐ ॥
॥ जय गुरु देव ॥
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गुरुवार, 15 अक्टूबर 2015
बड़ो का आशीर्वाद
दुआ और आशीर्वाद का फल
बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद बिल्कुल एक बिजली की तरह होता है,चाहे वे कोई दुस्मन की तरफ ही क्यों न हो !ऐसी ही महाभारत की कथा है जिसमे धर्म,ज्ञान,सत्य तथा रण कौसल की शिक्षा मिलती है ! जब कुरुक्षेत्र के मैदान में पांडव और कौरवों की सेनाएं आमने-सामने युद्ध के लिए तैयार थी यह तो सभी जानते है कि भगवान विष्णु ने अर्जुन को गीता उपदेश दिया था और तब उनको युद्ध के लिए तैयार किया था ! ठीक उसके बाद धर्मराज युधिश्ठर ने अपने अस्त्र शस्त्र रखकर हाथ जोड़कर कौरवों की सेना की तरफ बढे,यह देखकर सब हैरान थे कि अभी श्री हरि ने एक भाई को मनाया और अब ये क्या कर रहा है,परन्तु यह बात विष्णु जानते थे कि क्या होने वाला है !
(फोटो गूगल से प्राप्त )
धर्मराज जी सबसे पहले भीष्मपितामह के पास गए और दंडवत प्रणाम कर कहा कि पितामह मुझे आशीर्वाद दें कि मैं आप पर विजय प्राप्त कर सकूं,पितामह ने आशीर्वाद दिया और कहा तथास्तु विजयी भव !इसके बाद युधिस्ठर पुनः गुरु द्रोणाचार्य के पास गए और प्रणाम कर कहा गुरु जी मुझे आशीर्वाद दें कि मेरी सेना युद्ध में विजय प्राप्त कर सके गुरु जी ने कहा तथास्तु पुत्र,इसके पश्चात कृपाचार्य जी के पास गए और उसी तरह आशीर्वाद मांगा उन्होंने भी विजय प्राप्त होने का आशीर्वाद दिया!कहने का तात्पर्य है कि धर्मराज जी ने तो युद्ध से पहले ही अपनी जीत निश्चित कर ली थी,बस सिर्फ दुआ और आशीर्वाद से,इसके बिपरीत युवराज दुर्योधन ने अपनी सेना की ताकत के घमण्ड में किसी को प्रणाम भी नहीं किया और इस प्रकार से शंख ध्वनियाँ हुई और रणक्षेत्र में बीर बलवानो का युद्ध शुरू हुआ और अठारह अछोहिणी सेना मारी गई और धर्मराज यधिस्ठर की जीत हुई !
Location:
Southern Europe
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