Bhagavad Gita is the life management book and self motivational book. many peoples change there life by reading this book, this is not a religious book anybody, any religion can read for better future. many peoples got success his business from this energetic book, I'm writing a shloka a day so if anybody don't have enough time to read so you can read a shloka a day, Thanks.
BHAGAVAD GITA IN HINDI
शुक्रवार, 12 मार्च 2021
BHAGAVAD GITA 2:39
I'm a husband, fathers of two kids, would like to help people anywhere and believe to spiritualty.
गुरुवार, 11 मार्च 2021
BHAGAVAD GITA 2:38
🙏🙏
सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ।
ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि।।३८।।
सुख -सुख; दुःखे-तथा दुःख में; समे -समभाव से; कृत्वा-करके; लाभ -अलाभो -लाभ तथा हानि दोनों; जय -अजयौ-विजय तथा पराजय दोनों;ततः -तत्पश्चात; युद्धाय-युद्ध करने के लिए; युज्यस्व् लगो (लड़ो ); न -कभी नहीं; एवम -इस तरह; पापम-पाप; अवाप्यस्य-प्राप्तसि करोगे।
तुम सुख या दुःख,हानि लाभ,विजय या पराजय का विचार किये बिना युद्ध के लिए युद्ध करो। ऐसा करने पर तुम्हें कोई पाप नहीं लगेगा।
तात्पर्य :- अब भगवान् कृष्ण प्रत्यक्ष रूप से कहते हैं कि अर्जुन को युद्ध करना चाहिए क्योंकि यह उनकी इच्छा है। कृष्णभावनामृत के कार्यों में सुख या दुःख,हानि या लाभ,जय या पराजय कोई महत्व नहीं जाता। दिव्य चेतना तो यही होगी कि हर कार्य कृष्ण के निमित किया जाय,अतः भौतिक कार्यों का कोई बंधन (फल)नहीं होता। जो कोई सतोगुण या रजोगुण के अधीन होकर अपनी इन्द्रियतृप्ति के लिए कर्म करता है उसे अच्छे या बुरे फल प्राप्त होते हैं,किन्तु जो कृष्णभावनामृत के कार्यों में अपने आप को समर्पित कर देता है,वह सामान्य कर्म करने वाले के समान किसी का कृतज्ञ या ऋणी नहीं होता। भागवत में (११.५.४१ )कहा गया है -
देवर्षिभूताप्तनृणां पितृणां न किङ्करो नायमृणी च राजन।
सर्वात्मना यः शरणं शरण्यं गतो मुकुन्दं परिहृत्य कर्तम।।
" जिसने समस्त कार्यों को त्याग कर मुकुंद श्रीकृष्ण की शरण ग्रहण कर ली है वह न तो किसी का ऋणी है और न ही किसी का कृतज्ञ -चाहे वे देवता,साधु,सामान्यजन,अथवा परिजन,मानवजाति या उसके पितर ही क्यों न हों। "इस श्लोक में कृष्ण ने अर्जुन को अप्रत्यक्ष रूप से इसी का संकेत किया है। इसकी व्याख्या अगले श्लोकों में और भी स्पष्टता से की जायेगी।
क्रमशः !!! 🙏🙏
I'm a husband, fathers of two kids, would like to help people anywhere and believe to spiritualty.
बुधवार, 10 मार्च 2021
BHAGAVAD GITA 2:37
🙏🙏
हतो वा प्राप्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम।
तस्मादुत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चिचः।।३७।।
हतः -मारा जा कर; वा -या तो; प्राप्यसि -प्राप्त करोगे; स्वर्गम-स्वर्गलोक को; जित्वा-विजयी होकर;वा-अथवा; भोक्ष्यसे-भोगोगे; महीम-पृथ्वी को;तस्मात्-अतः; उत्तिष्ठ-उठो; कौन्तेय-हे कुन्तीपुत्र; युद्धाय-लड़ने के लिए; कृत-दृढ़; निश्चय-संकल्प से।
हे कुन्तीपुत्र ! तुम यदि युद्ध में मारे जाओगे तो स्वर्ग प्राप्त करोगे या यदि या यदि जीत जाओगे तो पृथ्वी के साम्राज्य का भोग करोगे। अतः दृढ़ संकल्प करके खड़े होओ और युद्ध करो।
तात्पर्य:- यद्दपि अर्जुन के पक्ष में विजय निश्चित नहीं थी फिर भी उसे युद्ध करना था,क्योंकि यदि वह युद्ध में मारा भी गया तो वह स्वर्गलोक को जायेगा।
क्रमशः!!!
I'm a husband, fathers of two kids, would like to help people anywhere and believe to spiritualty.
मंगलवार, 9 मार्च 2021
BHAGAVAD GITA 2:36
अवाच्च्यवादांश्च बहून्वदिष्यन्ति तवाहिताः।
निन्दन्तस्तव सामर्थ्य ततो दुःखतरं नु किम।।३६।।
अवाच्च्य :-कटु; वादान-मिथ्या शब्द; च-भी; बहून-अनेक; वदिष्यन्ति -कहेंगे; तव -तुम्हारी; सामर्थ्यं- सामर्थ्य को;ततः-उसकी अपेक्षा; दुःख-तरम -अधिक दुखदायी; नु -निस्संदेह; किम -और क्या है।
तुम्हारे शत्रु अनेक प्रकार के कटु शब्दों से तुम्हारा वर्णन करेंगे और तुम्हारी सामर्थ्य का उपहास करेंगे। तुम्हारे लिए इससे दुखदायी और क्या हो सकता है।
तात्पर्य:- प्रारम्भ में ही भगवान् कृष्ण को अर्जुन के अयाचित दयाभाव पर आश्चर्य हुआ था और उन्होंने इस दयाभाव को अनार्योचित बताया था। अब उन्होंने विस्तार से अर्जुन के तथाकथित दयाभाव के बिरुद्ध कहे गए अपने वचनों को सिद्ध कर दिया है।
क्रमशः !!!
I'm a husband, fathers of two kids, would like to help people anywhere and believe to spiritualty.
सोमवार, 8 मार्च 2021
BHAGAVAD GITA 2:35
🙏
भयाद्रणादुपरतं मंस्यन्ते त्वाम महारथाः।
येषां च त्वं बहुमतो भूत्वा यास्यसि लाघवम।।
भयात -भय से; रणात-युद्धभूमि से; उपरतम-विमुख; मंस्यन्ते-मानेंगे; त्वाम-तुमको; महारथा-बड़े -बड़े योद्धा; येषां -जिनके लिए; च -भी; त्वम् -तुम; बहुमतः-अत्यंत सम्मानित; भूत्वा -होकर; यास्यसि-जाओगे; लाघवम-तुच्छता को।
जिन -जिन महान योद्धाओं ने तुम्हारे नाम तथा यश को सम्मान दिया है वे सोचेंगे कि तुमने डर के मारे युद्धभूमि छोड़ दी है और इस तरह वे तुम्हें तुच्छ मानेंगे।
तात्पर्य :-भगवान् कृष्ण अर्जुन को अपना निर्णय सुना रहे हैं, "तुम यह मत सोचो कि दुर्योधन,कर्ण तथा अन्य समकालीन महारथी यह सोचेंगे कि तुमने अपने भाइयों तथा पितामह पर दया करके युद्धभूमि छोड़ी है। इस प्रकार उनकी दृष्टि में तुम्हारे प्रति जो सम्मान है वह धूल में मिल जाएगा। "🙏🙏
क्रमशः- !!!
I'm a husband, fathers of two kids, would like to help people anywhere and believe to spiritualty.
रविवार, 7 मार्च 2021
BHAGAVAD GITA 2:34
🙏
अकीर्ति चापि भूतानि कथयिष्यन्ति तेव्ययाम।
सम्भावितस्य चाकीर्तिर्मरणादतिरिच्यते।।३४।।
🙏
अकीर्तिम -अपयश; च -भी; अपि -इसके अतिरिक्त; भूतानि -सभी लोग; कथयिष्यन्ति -कहेंगे; ते- तुम्हारे; अव्ययाम -सदा के लिए; सम्भावितस्य -सम्मानित व्यक्ति के लिए; च -भी;अकीर्ति -अपयश,अपकीर्ति;मरणत -मृत्यु से भी; अतिरिच्यते - अधिक होती है।
लोग सदैव तुम्हारे अपयश का वर्णन करेंगे और सम्मानित व्यक्ति के लिए अपयश तो मृत्यु से भी बढ़कर है।
तात्पर्य :-अब अर्जुन के मित्र तथा गुरु के रूप में भगवान् कृष्ण अर्जुन को युद्ध विमुख न होने का अंतिम निर्णय देते हैं। वे कहते हैं, "अर्जुन ! यदि तुम युद्ध प्रारम्भ होने से पूर्व ही युद्धभूमि छोड़ देते हो तो लोग तुम्हें कायर कहेंगे। और यदि तुम सोचते हो कि लोग गाली देते रहें,किन्तु तुम युद्धभूमि से भागकर अपनी जान बचा लोगे तो मेरी सलाह है कि तुम्हें युद्ध में मर जाना ही श्रेयस्कर होगा। तुम जैसे सम्माननीय व्यक्ति के लिए अपकीर्ति मृत्यु से भी बुरी है। अतः तुम्हें प्राणभय से भागना नहीं चाहिए,युद्ध में मर जाना ही श्रेयस्कर होगा। इससे तुम मेरी मित्रता का दुरुप्रयोग करने तथा समाज में अपनी प्रतिष्ठा खोने के अपयश से बच जाओगे।"
अतः अर्जुन के लिए भगवान् का अंतिम निर्णय था की वह संग्राम से पलायन न करे अपितु युद्ध में मरे।
क्रमशः !!!
I'm a husband, fathers of two kids, would like to help people anywhere and believe to spiritualty.
शनिवार, 6 मार्च 2021
BHAGAVAD GITA 2:33
🙏
अथ चेत्वमिमं धर्म्यं सङ्ग्रामं न करिष्यसि।
ततः स्वधर्म कीर्तिं च हित्वा पापमवाप्स्यसि
।।२:३३।।🙏
अथ -अतः;चेत -यदि;त्वम् -तुम; इमम -इस; धर्म्यम-अपने धर्म को; सङ्ग्रामं -युद्ध को;न -नहीं; करिस्यसि -करोगे; ततः-तब; स्व -धर्मम -आपने धर्म को; कीर्तिम-यश को; च-भी; हित्वा -खोकर;पापम -पापपूर्ण फल को;अवाप्स्यसि-प्राप्त करोगे।
किन्तु यदि तुम युद्ध करने के स्वधर्म को संपन्न नहीं करते तो तुम्हें निश्चित रूप से अपने कर्तव्य की अपेक्षा करने का पाप लगेगा और तुम योद्धा के रूप में भी अपना यश खो दोगे।
अर्थात:-अर्जुन विख्यात योद्धा था जिसने शिव आदि अनेक देवताओं से युद्ध करके यश अर्जित किया था। शिकारी के वेश में शिवजी से युद्ध करके तथा उन्हें हराकर अर्जुन ने उन्हें प्रसन्न किया था और वर के रूप में पाशुपतास्त्र प्राप्त किया था सभी लोग जानते थे कि वह महान योद्धा है। स्वयं द्रोणाचार्य उसे आशीष दिया था और एक विशेष अस्त्र प्रदान किया था,जिससे वह अपने गुरु का भी वध कर सकता था। इस प्रकार वह अपने धर्मपिता एवं स्वर्ग के राजा इंद्र समेत अनेक अधिकारियों से अनेक युद्धों के प्रमाणपत्र प्राप्त कर चुका था,किन्तु यदि वह इस समय युद्ध का परित्याग करता है तो वह न केवल क्षत्रिय धर्म की उपेक्षा का दोषी होगा,अपितु उसके यश की भी हानि होगी और वह नरक जाने के लिए अपना मार्ग तैयार कर लेगा। दूसरे शब्दों में,वह युद्ध करने से नहीं,अपितु युद्ध से पलायन करने के कारण नरक का भागी होगा।
क्रमशः !!!
I'm a husband, fathers of two kids, would like to help people anywhere and believe to spiritualty.
सदस्यता लें
संदेश (Atom)