शुक्रवार, 28 जुलाई 2017

अर्पण (गुरुवाणी)

तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा।(गुरुवाणी के कुछ अंस ) 

एक बार की बात है एक बृद्ध साधु महात्मा थे गर्मियों की बात थी सड़क के किनारे सो रहे थे,इतने में एक चोर आया और बाबा जी का कंबल उठा के भाग गया। 

अब बाबा जी उठे तो देखा एक आदमी कम्बल लेके भाग रहा है,लोगो को इकट्ठा किया और उस चोर के पीछे भागने लगे,बहुत दूर तक भागे लेकिन चोर तो चोर है कोई भी उसे नहीं पकड़ पाया,उन में से एक आदमी ने कहा बाबा आप तो ज्ञानी ध्यानी हैं आँखें बंद कर ध्यान लगाओ और चोर को देखो कहाँ पर है,हम उसे तुरंत पकड़ कर ले आएंगे।

बाबा जी ने भी आँखें  बंद की हुए ध्यान में लग गए लगभग एक घंटे बाद लोगों ने सोचा अब तो बाबा जी को चोर मिल ही गया होगा उन्होंने बाबा जी को आंखे खोलने को कहा और पूछा बाबा जी चोर मिल गया क्या?तो बाबा बोले हाँ चलो मेरे साथ सब हाथ में डंडे लेके चल पड़े और बाबा जी सब को शमशान घाट पर ले गए बोले वो चोर जब भी आएगा यहीं पर आएगा कम्बल तो नहीं मिलेगा पर ये तो पक्का है की इसी स्थान पर आएगा। 

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           ( जय गुरुदेव कोटि कोटि नमन )

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