समय की नजाकत भी क्या खूबसूरत होती है, ८० तथा ९० के दशक तक के लोग किस तरह से चिट्ठी पत्री के द्वारा अपनी बात या प्यार किस तरह से एक दूसरे तक पहुंचाते थे,सायद उस जमाने के लोगों को याद होगा किस तरह से चिट्ठी भी आँसुओं से भीग जाती थी।
जब एक माँ अपने प्रदेश में रहने वाले बेटे की चिट्ठी किसी से पढ़वाती थी,तो रोने के बाद भी चिट्ठी कई दिनों तक सीने से लगा के रखती थी,ठीक वैसे ही पति की चिट्ठी,और प्रदेश में रहने वाला पति भी पत्नी की चिट्ठी पढ़ कर याद में अश्रुओं की धार के सिवा कुछ नहीं कर सकता था।
आज के जमाने में तो उस दर्द और प्यार भरे शब्दों को लोग मैसेज में भी नहीं लिख सकते,किन्तु चिट्ठी में कुछ और ही प्यार और पीड़ा का आदान प्रदान होता था,तथा बहिनें भी रक्षाबन्धन को न आ सकी तो चिट्ठी में थोड़ा सिंदूर और चावल के दाने भेज देती थीं।
और ये फ़िल्मी गाना तो इसी लिए हिट और फेमस भी हुआ होगा लोग खत में इस गाने की लाइनें भी लिख देते थे। फूल तुम्हें भेजा है खत में.....