BHAGAVAD GITA IN HINDI

शनिवार, 19 जून 2021

BHAGAVAD GITA 3:39

🙏🙏

आवृतं ज्ञानमेतेन ज्ञानिनो नित्यवैरिणा। 

कामरूपेण कौन्तेय दुष्पूरेणानलेन च।।

आवृतं -ढका हुआ; ज्ञानम -शुद्ध चेतना; एतेन -इससे; ज्ञानिनः-ज्ञाता का; नित्य -वैरिणा -नित्य शत्रु द्वारा; काम-रूपेण -काम के रूप में; कौन्तेय-हे कुन्तीपुत्र; दुष्पूरेण -कभी भी तुष्ट न होने वाली; अनलेन -अग्नि द्वारा; च -भी।

इस प्रकार ज्ञानमय जीवात्मा की शुद्ध चेतना उसके काम रूपी नित्य शत्रु से ढकी रहती है, जो कभी भी तुष्ट नहीं होता और अग्नि के समान जलता रहता है। 

तात्पर्य :-मनुस्मृति में कहा गया है कि कितना भी विषय -भोग क्यों न किया जाय काम की तृप्ति नहीं होती,जिस प्रकार कि निरन्तर ईंधन डालने अग्नि कभी नहीं बुझती। भौतिक जगत में समस्त कार्यकलापों का केन्द्रबिन्दु मैथुन ( कामसुख ) है, अतः इस जगत को मैथुन्य -आगार या विषयी-जीवन की हथकडियाँ कहा गया है। एक समान्य बन्दीगृह में अपराधियों को छड़ों के भीतर रखा जाता है इसी प्रकार जो अपराधी भगवान् के नियमों की अवज्ञा करते है, वे मैथुन जीवन द्वारा बंदी बनाये जाते है। इन्द्रियतृप्ति के आधार पर भौतिक सभ्यता की प्रगति का अर्थ है, इस जगत में जीवात्मा की बन्धन अवधि को बढ़ाना। अतः यह काम अज्ञान का प्रतीक है जिसके द्वारा जीवात्मा को इस संसार मे रखा जाता है। इन्द्रियतृप्ति का भोग करते समय हो सकता है कि कुछ प्रसन्नता की अनुभूति हो,किन्तु यह प्रसन्नता की अनुभूत्ति ही इन्द्रियभोक्ता का चरम शत्रु है। 

क्रमशः !!!🙏🙏  

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